Srikhetra Parikrama Lecture 01-Dec-2023 : HH Haladhara Swami Maharaj
YouTube Link - https://youtu.be/L_OSePxLjEs?si=xcOA3-o7Xi5taWM0
(मंगलाचरण)
ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः
श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले।
स्वयं रूपः कदा मह्यं ददाति स्वपदान्तिकम्॥
वन्देऽहं श्रीगुरोः श्रीयुतपद-कमलं श्रीगुरुन् वैष्णवांश्च
श्रीरूपं साग्रजातं सहगण-रघुनाथान्वितं तं सजीवम्।
साद्वैतं सावधूतं परिजन सहितं कृष्ण-चैतन्य-देवम्
श्रीराधा-कृष्ण-पादान्सहगण-ललिता-श्रीविशाखान्विताश्च॥
नम ॐ विष्णु पादाय कृष्ण प्रेष्ठाय भूतले।
श्रीमते भक्तिवेदान्त स्वामिन् इति नामिने।।
नमस्ते सारस्वते देवे गौर वाणी प्रचारिणे।
निर्विशेष शून्यवादी पाश्चात्य देश तारिणे।।
नमो महावदन्याय
कृष्ण-प्रेम-प्रदाय ते
कृष्णाय कृष्ण-चैतन्य-
नम्ने गौर-त्विषे नमः
नीलाचल निवसाय नित्याय परमात्मने
बलभद्र सुभद्राभाया श्री जगन्नाथायते नमः
श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि-गौरभक्तवृन्द॥
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
हरे कृष्ण
श्रील प्रभुपाद की महती कृपा से, सभी गुरु वर्ग आचार्य वर्ग की कृपा से, और प्रभु जगन्नाथ की की महती कृपा से, His Holiness भक्ति पुरुषोत्तम स्वामी महाराज, और कई भक्त लोग ने ये जो आयोजन कर रहे हैं हर साल - श्रीखेत्र परिक्रमा। ये भक्त लोग का संग करने के लिए हमको एक सुयोग मिलता है। भक्त संग करना। मुझे तो ज़्यादा Story (कहानी) बोलना, Story (कहानी) कैसे बोलना है। Sound (आवाज़) को ठीक करो।
जगन्नाथ जी का Story (कहानी) आज कल तो किताब में है। में यही सोच रहा था, आज कल Speaker (वक्ता) को जितना पता नहीं है, Hearer (श्रोता) को ज़्यादा पता है। समझ रहे है न। बोलने वाले को ज़्यादा पता नहीं है, सुनने वाले को ज़्यादा पता है। Youtube में कितना मिलता है न।
तो में तो इसलिए ज़्यादा story (कहानी) नहीं बोलूंगा। आप लोग पढ़ लीजिये। और मेरा हिंदी भी इतना शुद्ध नहीं है। में ओड़िआ आदमी हूँ। ओड़िआ में बोलता हूँ। कभी कभी हिंदी में बोल देता हूँ ऐसा।
जैसे पूरी परिक्रमा है, नवद्वीप धाम, नवद्वीप मंडल परिक्रमा है। ब्रज मंडल परिक्रमा है। कौन सा भाव में हमको परिक्रमा करना पड़ेगा।
Sound कण करीच कीरे (ओड़िआ - आवाज़ को क्या किये हैं?) Sound () ठीक करो। हरे कृष्ण। हरे कृष्ण। हरे कृष्ण। Fan (पंखा) टा देल ठीके (ओड़िआ - थोड़ा पनका लगा दीजिये न)।
कौन सा भाव में करना चाहिए? कर्मी लोग भी परिक्रमा करते है। करते नहीं है? ब्रज में मंडल में जाइये। में देखता हूँ जब भी जाता हूँ। वृन्दावन में जाता हूँ। परिक्रमा लोग करते हैं। प्रयतः कर्मी धर्म, अर्थ, और काम तीनों के लिए करते हैं। इसमें percent (प्रतिशत) ज़्यादा आएगा काम, काम के लिए, कामना के लिए। जैसे नौकरी नहीं हो रहे हो, लड़की का शादी नहीं हो रहे हो। कोई कामना है। कामना के लिए ज़्यादा लोग। आजकल धर्म का मतलब 'काम'।
धर्मस्य ह्यापवर्ग्यस्य नार्थोऽर्थायोपकल्पते । -- श्रीमद भागवतम १ २ ९
धर्म का जो लक्ष्य अपवर्ग है, यह तो आजकल छिप गया है। लोग अपवर्ग के लिए, मुक्ति के लिए कोई नहीं कर रहा है। कामना के लिए। "अर्थस्य"। प्रायतः, कलयुग का इतना बड़ा प्रभाव है, और रजगुण का इतना बड़ा प्रभाव है, प्रायतः कामना के लिए लोग धर्मानुष्ठान करते हैं। अब देखिये क्या दंडवती परिक्रमा कर रहे हैं ना गोवर्धन में। पुछ लीजिए ना कितना लोग ब्रज प्रेम के लिए कर रहे हैं। पुछ लीजिए कोई कोई परिक्रमा कर रहा है। मैं ऐसा नहीं बोलता हूं, कि नहीं करते है। पुछ लीजिए आप, percentage (प्रतिशत) कितना है। पुछ लीजिए आप।
और जो ब्रज प्रेम के लिए, ब्रज प्रेम उन लोग का लक्ष्य है। इतना महाप्रभु का धारा है ना, महाप्रभु का जो procedure (विधि) है, उसी procedure (विधि) में जाएंगे। परिक्रमा हमको करना चाहिए। लक्ष्य क्या है? कौन सा भाव में करना चाहिए?
जैसे चैतन्य महाप्रभु परिक्रमा कर रहे थे गोवर्धन। यह श्रीखेत्र, वृंदावन, और नवदव तीनों महाप्रभु का धाम है। महाप्रभु ने प्रकट किया।महाप्रभु कैसे प्रकट किया? महाप्रभु भाव प्रकट किये। धाम में कैसे रहना चाहिए। धाम को कौन से दृष्टि में दर्शन करना चाहिए। धाम में रह जाने से धाम दर्शन नहीं होता है। धाम चले आने से धाम का दर्शन नहीं होता है। धाम स्पूरण होते हैं।
धमेरा स्वरूप, स्फुरिबे नयने,
हा-इबा राधारा दासी -- (श्रील भकरीविनोद ठाकुर द्वारा रचित "सिद्धि-लालासा" | श्री लघुचन्द्रिकाभाष्य)
ऐसा नहीं कि, जितना तदिय वस्तु होते हैं, तदिय वस्तु समझते हैं ना? जो भगवान से अभिन्न होते हैं। तुलसी, भागवतम, शुद्धावत, विग्रह। जो तदिय वस्तु होते हैं वो self manifested (स्वउदित) होते हैं। स्फुरण, जैसे holy name (शुद्ध नाम)। अभी हम, मन लगाकर, बुद्धि लगाकर holy name (शुद्ध नाम) कर रहे हैं। "१६ माला जप करना चाहिए", "नहीं करूंगा तो ये अपराध होगा"। मेरा भक्ति नहीं होगा। बुद्धि लगाकर, मन लगाकर, हम हरिनाम कर रहे हैं। नाम स्फुरण नहीं हो रहा है। self manifest (स्वउदित) का क्या बोले हिंदी में? "स्फुरण" समझ रहे हैं ना? स्फुरित होना स्वतः। उदित होना। यह नहीं हो रहा है। जब हम शुद्ध हो जाते हैं, साधु गुरु वैष्णव लोग की कृपा प्राप्त करते हैं, ऐसे उदित होता है। जैसे सूरज, सूरज उगता है। कोई साधन से नहीं उगता है। सिर्फ इतना होना चाहिए कि, "कोहरा" बोलते हैं ना, हिंदी में क्या बोलते हैं, कोहरा बोलते हैं, Mist (कोहरा)। कोहरा नहीं होना चाहिए बस। तब तो दिखाई देता है। हमारा अंतर में इतना। हम जितना साधन, भजन, कर रहे हैं ना, शुद्ध साफ सुथरा होने के लिए। एक सरल भक्त होने के लिए, एक शरणागत भक्त होने के लिए। जब हम शरणागत हो जाते हैं ना, यही योग्यता होता है कि वो manifest (उदित) होते हैं तदिय वस्तु।
भक्तिविनोद ठाकुर वही भाव को लिखे हैं - धमेरा स्वरूप, स्फुरिबे नयने, हा-इबा राधारा दासी। में राधारानी की जो दासी बनूँगी, और धाम का जो स्वरुप प्रकट होगा। ये भाव कौन सा है? उनका ऊपर पद देख लीजिये क्या लिखे हैं।
स्वपाचा-गृहेते, मागिया खैबा,
पिबा सरस्वती-जला -- (श्रील भकरीविनोद ठाकुर द्वारा रचित "सिद्धि-लालासा" | श्री लघुचन्द्रिकाभाष्य)
कोई शरीर धारणा में नहीं रहूंगा। ऐसा नहीं कि ब्रजवासी, कोई ब्रजवासी का घर में रोटी मांगूंगा। नहीं। "सोपच"। चाहे चंडाल हो, धाम में वास कर रहे हो ना, उनका घर में मैं रोटी मांग कर खा लूंगा। यह बहुत, यह धाम स्फुरण तब होता है। लेकिन हमको तो भाग्यवान है, कम से कम तीन दिन, चार दिन कोई रहता है धाम में। लेकिन धाम जो वस्तु होते हैं ये तदिय वस्तु होते हैं। चैतन्य महाप्रभु जब आते थे, आपको तो पता है ये तो महाप्रभु का धाम है। वो तो सचल जगन्नाथ, ये अचल जगन्नाथ है। वो तो मंदिर का भीतर है। और चैतन्य महाप्रभु पूरा भारत वर्ष में सब का हृदय में मंदिर बनाते थे। नाम के माध्यम से - हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
कृष्ण थे, जगन्नाथ थे, लेकिन जगन्नाथ को जैसे समझ रहे थे लोग जगन्नाथ ऐसे नहीं थे। कृष्ण थे ब्रजभूमि में। कृष्ण को जैसे समझ रहे थे लोग। समझ रहे हैं ना आप? ऐसे जब कृष्ण नहीं है, कृष्ण ब्रजेन्द्र नंदन है। उनका भाव जो है - यह नंदलाला है।
आज भी ब्रजवासी, मैं गया था अभी वृंदावन में। वो ऐसा हनुमान चालीसा पढ़ रहे थे। मैं बोला ठीक है, तुम तो यह राधा का नाम इतना महिमा बोल रहे हो, फिर तुम ब्रजवासी हो, हनुमान चालीसा क्यों पढ़ रहे हो? मुझे बताओ? पढ़ना कोई गलती बात नहीं है, लेकिन यह रासावास है। हमारा गौड़ीय से यह रासावास है। हम लोग ऐसा नहीं करेंगे। मैं, वह ब्रजवासी है। मैं बोला तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? तुम बोल रहे हो ना राधा, राधा, नाम करने से ऐसा होगा ऐसा होगा, फिर इसको क्यों? बोलो? क्यों कर रहे हो? बोलो, बताओ? ये india (भारत) में पूरा culture (सभ्यता) ऐसा ही था। आज भी ऐसा mix (मिश्रण) है। जो गौड़ीय सिद्धांत, चैतन्य महाप्रभु का सिद्धांत को पता नहीं है। क्योंकि इसमें रसाभास होता है। आप कर लेते कर लीजिए। यह भविष्य के लिए क्या हालत होगा, आप कभी सोचे हैं? यह एक परंपरा है। यह एक परंपरा है। हमारा भजन हो रहा है, हमको रुचि लग रहा है, आप कर लीजिए। इसको Preaching (प्रचार) प्रचार मत कीजिए। इस संप्रदाय में सिद्धांत खंडित हो जाएगा। महाप्रभु ने प्रकट किये हैं। कृष्ण कौन है? कृष्ण कौन है? कौन से कृष्ण है? हम जो उपासना करते हैं, कौन सा कृष्ण को उपासना करते हैं? द्वारकेश कृष्ण नहीं। देखो, वही कृष्ण है, द्वारकेश है, मथुरेश है। वही कृष्ण है। लेकिन जो भाव है, हमारा जो भाव है ना - ब्रज भाव है।
और इधर जब चैतन्य महाप्रभु आये, जगन्नाथ जी को दर्शन किया, उड़ीसा में जगन्नाथ जी को क्या मानते थे? अभी मैं आ रहा था पैदल में, उधर धाम में, धाम में, वो सब परिवासी, उसमें श्लोक लिखा है। वह मानते हैं कि जो महाकाल, क्या काली, काली है, दक्षिणा काली है ना। गए हैं मंदिर? दक्षिणा काली मंदिर है। दूसरा दूसरा यह सब, जगन्नाथ का साथ समान है। वो मानते हैं ऐसे। वो Verse (श्लोक) दिखा देते हैं पुराण से लाकर। ये Verse (श्लोक) इधर है वो Verse (श्लोक) उधर है। ये इधर है। जो शिव है वो ब्रह्मा है, और ब्रह्मा विष्णु और महेश्वर। आपको पता नहीं, वो उड़ीसा में philosophy (दर्शन) है। जगन्नाथ जी को ऐसे मानते हैं। जगन्नाथ, बलदेव, सुभद्रा कौन है? ब्रह्मा, विष्णु, और महेश्वर हैं।
महाप्रभु आने से पहले, ये धाम का जो स्वरूप, नाम का जो स्वरूप, भगवान का विग्रह का जो स्वरूप, किसको पता नहीं था। जो पता था, वो पुराण के हिसाब से। आंशिक भाग से, आंशिक समझ रहे हैं ना? थोड़े थोड़े। उन लोगों को पता था। लेकिन महाप्रभु आने के बाद भाव प्रकट हुए, क्यूंकि वो राधा है। महाप्रभु जो आते थे, जैसे जगन्नाथ, ये श्रीखेत्र धाम, महाप्रभु, यह धाम का नाम क्या है? श्री खेत्र। श्री का मतलब क्या है? राधारानी। प्रभु जी बोले लक्ष्मी। श्री का अर्थ ऐश्वर्या। प्रभु जी बोल रहे हैं ऐश्वर्या। ऐश्वर्या कहां से आए हैं? संसार, राधाणी से लक्ष्मी प्रकट हुए हैं। राधाणी का विस्तार है। इधर ये श्रीखेत्र जो है ना, अगर उनको व्याख्या करेंगे ना, तो ये राधारानी का क्षेत्र हैं।
और इसको कैसे लगाएंगे अब सिद्धांत में। आप देख लीजिए बृहद भागवत में सनातन गोस्वामी ने क्या लिखे हैं। गोप कुमार आए थे ना। गोप कुमार इधर आए थे। तो उनको साधु ने बोल दिया कि जगन्नाथ धाम चलो। जगन्नाथ जी बहुत कृपालु हैं। अरे जगन्नाथ जी श्यामसुंदर है। और वही जगन्नाथ जी गौर सुंदर भी है। अपना घर का बात कौन बोल सकता है? अपना घर का खान पान कौन बोल सकता है? मैं बोल सकता हूं? आपका मनोभाव कौन बोल सकता है? मैं बोल सकता हूं? आप ही बोल सकते हैं। कृष्णा कौन है कृष्णा बोल सकते हैं। नहीं तो राधा बोल सकते है। और दूसरा कोई नहीं बोल सकते हैं।
तो गोपकुमार जब इधर आए, तो क्या हुआ? आपको पता है वो story (कहानी) पता है? मैं ज़्यादा नहीं बोलूंगा। गोप कुमार तो इधर आने लगे, जगन्नाथ जी बहुत सुंदर उनको लगा, जगन्नाथ जी का इधर। लेकिन बार बार कोशिश कर रहे थे। उनको अच्छा लग रहा था इधर। जगन्नाथ जी को दर्शन करते थे। लेकिन जो भाव है ना वो छिप कर रहता था। तो कुछ दिन के बाद वो अनुमति लिए कि, permission (अनुमति) लिए कि जगन्नाथ जी मुझे ब्रजभा में जाना है। कि मैं ब्रज में था ना, मेरा गुरुजी उधर है। मंत्र मुझे दिए हैं। और ऐसे प्रकट, सनातन गोस्वामी ऐसे भाव लिखे हैं ना, जैसे जगन्नाथ जी से बिल्कुल उनका reciprocation (विनिमय) हुआ था। भाव। जैसे हम भजन कर रहे हैं। हमारा कोई भाव, कोई आदान प्रदान, समझ रहे हैं ना। कि हृदय का जो भाव है ना, इसमें recifocation (विनिमय) नहीं हो रहा है। जैसे holy name (शुद्ध नाम) कर रहे हैं। holy name (शुद्ध नाम) का जो influence (प्रभाव) है, वह हमको touch (स्पर्श) नहीं कर रहा है। कितना दुख का बात है देखो। जिसको प्रेम कर रहे हैं उसका भाव अंतर में नहीं आ रहा है। जैसे कोई mobile (मोबाइल), किसीके के पास mobile (मोबाइल) है ना। mobile (मोबाइल) को आप प्रेम कर रहे हैं। बहुत प्यार कर रहे हैं। तो कितना बार घिसाई करते हैं कपड़ा में आप देखे हैं ना। ऐसे ऐसे कपड़े कितना बार घिसाई करते हैं। उसको प्रेम है ना। उसकी recifocation (विनिमय) आता है। Pocket (जेब) में दस बार, कोई काम नहीं है, फिर कि उसको हाथ में पकड़ते हैं। कुछ काम नहीं होता है, उसका हाथ में पकड़ते हैं। प्रेम होता है ना एक recifocation (विनिमय) चाहिए। जैसे हम नाम करते हैं, सेवा करते हैं, कीर्तन करते हैं, एक भाव अंतर में नहीं आ रहा। लेकिन सनातन गोस्वामी ऐसे भाव में लिखे हैं कि, गोपकुमार जब जगन्नाथ जी को दर्शन करते थे, पूरा feelings (भाव) कर देते थे। ऐसा भाव आ रहा था कि, नहीं नहीं जगन्नाथ जी अनुमति दे रहे हैं permission (अनुमति) दे रहे हैं। "तुम जाओ। वो तो गए। फूलमाला लेकर गए, ब्रजभूमि गए। आज ब्रजभूमि में रहे हैं, वो नारद मुनि ने फिर आये हैं। नारद मुनि ने आये। और उनका गुरु ने स्वप्न देखा। बोले देखो तुम्हारा धर्म ये है कि मैं मंत्र दिया हूं ना, तो मंत्र साधन करना है। समझ रहे हैं ना आप। हमारा कोई special (विशेष) महाप्रभु की धारा में, आप जितना साधन सब कर रहे हैं। जैसे धाम में आए हैं, धाम परिक्रमा कर रहे हैं। कभी कोई भक्त लोग जा रहे हैं। मायापुर जा रहे हैं, नवद्वीप जा रहे हैं। हम सब जा रहे हैं। ये वैष्णव लोग की कृपा, धाम की कृपा, श्रीविग्रह की कृपा, लाकर भगवान के नाम करना है, और गुरु की सेवा करना है। वैष्णव लोग की सेवा करना है। क्यों? क्योंकि प्रेम प्राप्ति का यही उपाय है।
तो उनको गुरुजी ने बोला, नहीं, तुमको पता होना चाहिए कि तुमको नाम करना है। भगवान के नाम करना है - हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। प्रभुपाद जी का ये mood (मनोदशा) था। प्रभुपाद जी को पता था। कभी कभी भक्त लोग सोचते हैं ना - मैं धाम में रह जाऊंगा तो मेरा भक्ति हो जाएगा। नहीं भक्ति ऐसा चीज़ नहीं होता है। तार संग प्रधान है। किसी का संग तुम कर रहे हो। भक्त, भक्ति संघ में होता है। धाम में रहते हो, वो संग अच्छा नहीं मिलता तो क्या? फिर जो संग करने वाले, उनका मनभाव क्या रहता है। अनुकूल भावना रहता है कि नहीं। आचार्य लोगों को पता है ना। नहीं तो प्रभुपाद जी दुनिया में इतना मंदिर क्यों बनाये। वृंदावन में एक center (केंद्र) क्यों नहीं बनाए, कि सब भक्त आ जाए? प्रभुपाद जी, क्या बोलते थे? go back, back to godhead (भगवन के धाम वापस जाओ)। तो अगर वृंदावन में सब गोलग वृंदावन जाएंगे तो फिर वो लोग जो दूसरा दूसरा center (केंद्र) में हैं, वो कहां जाएंगे? ऐसे नहीं। हमारा सिद्धांत ऐसे नहीं होता है। कहां भी रहिये, आपको शुद्ध नाम करना पड़ेगा। भगवान की शरणागत होना पड़ेगा। हम जो परिक्रमा कर रहे हैं, जो सेवा कर रहे हैं, जो भी कर रहे हैं ना इसके लिए। शुद्ध नाम के लिए। गुरु चरणाश्रय करके गुरु का सेवा करने के लिए। यह गौड़ीय सिद्धांत है। time place circumstance (समय, स्थान एवं स्तिति) में वह अलग होता है। समझ रहे हैं ना। किस व्यक्ति के लिए क्या उपदेश है। वो अलग है, लेकिन सिद्धांत यही है।
तो गोप कुमार को उधर। फिर बोले स्वप्न में जगन्नाथ जी आये हैं। सनातन गोस्वामी लिखें हैं - " तुम देखो तुम अभी वृंदावन में हो तुम सोच रहे हो कि मैं अलग हूं। मैं अलग नहीं हूं। तुम इधर आ जाओ फिर तुमको पता चलेगा। जो जो लीला में बाल्य लीला किया हूं ना, वो इधर भी है। वो स्वरुप तुम मुझे दर्शन कर सकते हो। तुम इधर आ जाओ।"
तो जो मैं ये पढ़ रहा था, तो मेरा ये भाव आ रहा था। देखो, हम आ रहे हैं जगन्नाथ को दर्शन करने के लिए। आ रहे हैं ना हम लोग? तो हम जगन्नाथ जी का दर्शन हो गया? हैं? तो हो गया? तो इधर बैठे हो कैसे? जगन्नाथ, जगन्नाथ जी का दर्शन हो गया, महाप्रभु। जगन्नाथ जी का हम दर्शन किए हैं। जगन्नाथ जी अगर हमको दर्शन कर लेंगे, उनका कृपा दृष्टि हमारा ऊपर आ जाएंगे ना, आप मंदिर से नहीं आ सकते हो। हम गए दर्शन कर लिए, हमारा मन को थोड़ा शांत आ गया। "मैंने भगवान का दर्शन कर लिया"। हमारा जैसा चेतना है, जैसा भाव है, ठीक है ये कोई मन मैं ये नहीं बोलता हूँ की ये गलत बात है। ये सही है। लेकिन भगवान जब कृपा दृष्टि डाल देते हैं हमारे ऊपर।
जैसे महाप्रभ सुबह जाते थे, शाम को, शाम नहीं दो-तीन बजे आते थे। वो खड़ा होते थे। दर्शन करते थे। रोते थे। भगवान जगन्नाथ जी जब कृपा कर देते हैं, भगवान कभी भी किसको कृपा कर देते हैं, कृपा दृष्टि दे देते हैं, तब तो हो गया। दर्शन होता है। जैसे भक्तिविनोद ठाकुर का पद हम हम पढ़ रहे थे। स्वरूप, स्वरूप। धमेरा स्वरूप, स्फुरिबे नयने, हा-इबा राधारा दासी। स्वरूप है। समझ रहे हैं ना आप। जैसे हम, हमारा स्वरूप क्या है? मैं आपको देखता हूं। आप भक्त है। आपका स्वरूप क्या है? आप कृष्ण का दास है। ये तो दर्शन नहीं हो रहा है। स्वरूप का दर्शन नहीं हो रहा है। कोई माता जी है, कोई प्रभु जी है, कोई सन्यासी है, कोई गुरु है, स्वरूप क्या है? हम तो शरीर दर्शन करते है। जैसे भगवान का विग्रह को दर्शन करते हैं। धाम आ जाते हैं, जगन्नाथ धाम को दर्शन करते हैं। वृंदावन जाते हैं, वृंदावन धाम को दर्शन करते हैं। स्वरूप क्या है? स्वरूप स्फुरण होता हैं।
जगन्नाथ जी ऐसे बोले गोप कुमार को - तुम इधर आ जाओ। तुम इस बार जब आएगा ना, तब तुम दर्शन कर सकते हो। मेरा बाल्य लीला सब दर्शन कर सकते हो। तब वो आए। जैसे चैतन्य महाप्रभु जहां जहां जगन्नाथ जी का, कृष्ण का, जैसे जैसे स्वरूप को दर्शन कर रहे थे, सनातन गोस्वामी वैसे लिखें हैं। जगन्नाथ, समुद्रार्थ जब आते थे, "जमुना जी"। गुप्त कुमार से। महाप्रभु ऐसे देखते रहते थे की नहीं? महाप्रभु इधर वृंदावन का भाव पूरा। वृंदावन का top most (सर्वोच्च) जो क्या बोले सर्वोच्च जो भाव है। क्या भाव है? वृंदावन का सर्वोच्च भाव क्या है? कौन सा भाव? गोपी भाव? ठीक है। प्रेम में दो भाव हैं - एक है मिलन। प्रेम का दो part (खंड) होता है। एक "मिलन", एक "विरह"। union (मिलन) separation (विरह)। प्रभुपाद चैतन्य चरितामृत पढ़ना चाहिए ना। प्रभुपाद का किताब पढ़ना चाहिए। एक union (मिलन) होता है, एक separation (विरह) होता है। जैसे, इधर देखो, जिसको आप प्रेम करते हैं, तो मिलन हो जाता है। एक आनंद मिलता है। और विरह में, दुख भी होता है। स्मरण भी होता है। वो मेरा दोस्त इधर नहीं है। वो कैसे हैं। अभी कहाँ हैं, क्या कर रहे हैं। मिलन में। मिलन में एक आनंद है। विरह एक? हाँ? आनंद है? इस दुनिया में भौतिक संपर्क है ना, इसलिए विरह में आनंद नहीं है। भोगीजुभ का separation (विरह) में कोई आनंद नहीं होता है। प्रेम में विरह में ज़्यादा है। प्रेम का स्वरूप यही होता है ना। जितना हम विरह में रहते हैं, विच्छेद में रहते हैं ना, प्रेम बढ़ती है। ब्रज में श्रेष्ठ भाव क्या है? माथुर विरह। माथुर विरह इनको बंगाली में बोलते हैं। हमारा गौड़ीय Term (शब्द) है - माथुर विरह।
ब्रज गोपियों। जब अक्रूर ने भगवान कृष्ण को ले गए, कहां से? ब्रजभूमि से। उस समय गोपी लोग का जो भाव था, उनको माथुर वीरा बोलते हैं। कृष्ण मथुरा चले गए हैं, उसका बाद गोपी लोग का अंतर में जो विरह भाव उदित हुआ है ना, उसको माथुर विरह बोलते हैं। वही भाव महाप्रभु ने प्रकट किया इधर। इसी भाव से महाप्रभु जगन्नाथ जी को दर्शन करते थे। कोई माथुर विरह भाव हो जाता है ना, तब तो। चटक पर्वत को क्या दर्शन करते थे ? "गोवर्धन" समुद्र को क्या दर्शन करते थे? "जमुना"। हम समुद्र दर्शन करते हैं, जमुना ज्ञान होता है? कि sporting (खेलना) करना है। खेलना है पानी। कितना सुंदर है। देखो, भाव अलग हो जाता है ना। ये माथुर विरह भाव रहता था। महाप्रो जहां भी दर्शन करते। जैसे सिंघद्वार। श्रीखेत्र, जब मंदिर में जाते थे, मंदिर को क्या दर्शन करते थे? जगन्नाथ मंदिर के अंदर जब महाप्रभु जाते थे, कौन से भाव में दर्शन करते थे? कुंज में। कुंज में राधा और कृष्णा जैसे हैं।
आप लोग चैतन्य चरितामृत पढ़ना चाहिए ना। कितना लोग चैतन्य चरितामृत पढ़ रहे हैं, हाथ उठाया ना थोड़ा मैं देखता हूँ। अरे बाबा। कोई भी नहीं है। क्यों नहीं पढ़ रहे हैं? भागवतम कितना लोग पढ़ रहे हैं? ठीक है। भागवत। प्रभुपाद किताब पढ़ना चाहिए। specially (विशेषकर) महाप्रभु जो भाव है, वो चैतन्य चरितामृत में है। और कोई कोई devotee (भक्त) बोलते हैं हम qualified (योग्य) नहीं हैं, हम नहीं पढ़ेंगे। ठीक है, तो कम से कम teaching of lord Chaitanya पढ़ना चाहिए ना। योग्यता कब होगा? और आज कल तो पढ़ाई इतना कम हो गया है। ज़्यादा लोग सुनते हैं। ठीक है भाई आश्चर्य teaching (शिक्षा) पता होना चाहिए ना। ये सब common (साधारण) चीज़ होता है। नहीं तो हम धाम आऐंगे ना, कौन सा भाव आएगा? मंदिर का भीतर जाता है ना। जगन्नाथ जी, बलदेव है, और कौन है? सुवद्रा है। और सुदर्शन है। तो इधर भाई है, दो भाई है, और एक बहन है। है ना। तो उनका दास है। लेकिन महाप्रभु कैसे दर्शन कर रहे थे? ये कुंज है। सखी लोग कुंज में जैसे दर्शन करते है महाप्रभु वैसे दर्शन करते थे। और मिलन में भी विरह था। समझ रहे हैं न। "मिलन" हिंदी में मिलन बोलते हैं न? आपस में जो मिलते थे, इसमें विरह है? प्रेम का धर्म विचित्र होता है। इस जगत में प्रेम नहीं है ना, हमको क्या पता होग। मिलन में विरह था। जगन्नाथ जी को दर्शन करते थे, रोते थे। रोते थे। इतना रोते थे, प्रेम का ऐसा स्वरूप हो जाता है। आप देखे हैं न महाप्रभु का अंगुठ का चिह्न है। नहीं देखे हों? देखे हैं न। पाँव का चिह्न है देखे हैं न? वो जो पाँव है न, पाँव का जो मंदिर है छोटा मंदिर है, वो उधर ही था। वही गरुड़ खम्भा के पास में था। महाप्रभु उधर ही खड़ा होते थे। लोग इसमें पांव डाल, पैर डाल देंगे ना, इसीलिए राजा ने उसको उठा कर उधर ही मंदिर बना है। अलारनाथ जाएंगे जब। देखिए उधर तो विरह में पिघल गया है पत्थर। इधर मिलन में। प्रेम का देखो। ये उड़ीसा एक स्थान है, ये जगन्नाथ पूरी, चैतन्य महाप्रभु जन्म लिए कहां? प्रकट हुए कहां? बंगाल में। लेकिन महाप्रभु का भाव प्रकट हुए हैं पूरी में। विरह में आलारनाथ में, विरह में जो पत्थर है वो पिघल गए कि नहीं? विरह में। क्योंकि ठाकुर जी कहां थे उस समय? उसको अणसर बोलते हैं। fifteen days (१५ दिन) ठाकुर जी रहते हैं ना। ठाकुर जी को बुखार हो जाता है। वो बुखार में सोते हैं। क्या जगन्नाथ जी का लीला मेरा दिमाग भी पकड़ में नहीं आता है। मुझे महाप्रभु अच्छा लगते है। साधा, सरल, बस नाम करो, प्रेम से रहो, सरल बनो। महाप्रभु का formula (सूत्र) यही होता है। वैष्णव लोग को प्रेम करो, भगवान का नाम करो, और सरल जीवन। कीर्तन करो - हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
अलारनाथ में, क्या अलारनाथ में क्या हुआ है? पत्थर, पत्थर उधर पिघल गया है। कैसे? विरह में। महाप्रभु, जगन्नाथ जी पंद्रह दिन भीतर रह गए। महाप्रभु दर्शन नहीं पाए। तो विरह में जा रहे हैं। जैसे कृष्ण का दर्शन प्राप्त नहीं करने से गोपी लोग जैसे विरह में जाते हैं। ऐसे विरह में जाते जाते हैं। ढूंढते थे कुञ्ज में, कहां है कृष्ण? समझ रहे हैं ना। कृष्ण कहां है।
अटति यद् भवानह्नि काननं
त्रुटि युगायते त्वामपश्यताम् ।
(कुटिलकुन्तलं श्रीमुखं च ते
जड उदीक्षतां पक्ष्मकृद् दृशाम् ॥) (-- Srimad Bhagavatam 10.31.15 )
और महाप्रभाभ को क्या लिखे हैं? सिक्शास्टैकम में? "युगाइतं निविष" कहां? यह जो Verse (श्लोक) लिखे हैं, उसका प्रमाण कौन सा भूमि है? श्रीखेत्र। यह भूमि है। दर्शन कर रहे थे। ऐसे गोविंद पास में खड़े रहते थे। मंदिर का, जगन्नाथ जी का मंदिर का भीतर दर्शन कर रहे थे। और पुजारी लोग जब प्रसाद लाकर देते थे, तो गोविंद को बोलते थे - "गोविंद, इतना जल्दी कैसे time (समय) हो गया। सुबह से खड़े है। दो बजे तक। तब तो महाप्रू पता नहीं था। यह प्रेम का धर्म पता है? सर्वोच्च जो भाव है, प्रेम का जो सर्वोच्च भाव है, इधर ही प्रकट हुए। गंभीरा, आप गंभीरा गए हैं? कल जाएंगे आप, देख लीजिए। जो गंभीरा है उधर ही महाप्रभु थे। मादनाख्य मनभाव, राधारानी का जो Top Most stage (उच्चतम स्तर) है - प्रेम उनका है। उधर ही प्रकट किए थे। वर्षों में दो पार्षद थे। कौन? स्वरुप दामोदर और राय रामानंद। तीसरा व्यक्ति से महाप्रभु कभी चर्चा नहीं किए हैं। ब्रज का जो भाव है, प्रेम है, वह कभी बाहर से चर्चा नहीं करते थे। प्रेमी भक्त का साथ। और महाप्रभु इधर तीन भाव से रहते थे। पिछला बार शायद मैं बोला हुआ हूं, तीन भाव से रहते थे। कभी बाह्य भाव से आ जाता है। प्रेम अंतर है, पूरा छिपा देते हैं। बाह्य भाव से। philosophical discussion (सैद्धांतिक चर्चा) करते हैं, भक्तों को पूछते हैं - "कैसे हो", "क्या हो", "कब आए"। और कभी कभी अंतर दशा में चले जाते हैं। इसको अंतर दशा बोलते हैं। बिल्कुल पता होता ये सन्यासी है। ऐसे खड़ा है। जैसे जगन्नाथ जी, जगन्नाथ जी को दर्शन करते हैं। आंख ऐसे खोला है लेकिन पूरा ब्रज भाव में हैं। अंतर दशा में हैं। और अर्धवाय दशा। लीला का आवेश भीतर है, लेकिन बाह्य से काम करते थे। half madness (अर्धवाय)। इसे पता नहीं चलता है। महाप्रभु तीनों दशा में रहते थे। रात में संभालना मुश्किल होता था महाप्रभु जी को। गंभीरा में, रात जितना हो जाता है। राजधानी का सबसे ज्यादा क्या बोले? separation (विरह) जो भाव है, कब प्रकट होता है? दो time (समय)। कौन सा time (समय)? रात जब हो जाता है। और कौन सा time (समय)? दिन में, सूर्य पूजा करने के लिए जाएगी। वो जाएगी ना। cooking (रसोई) करते थे। पूरा चिंतन होता था, कैसे जाओगे, कृष्ण को खिलाऊंगी। सेवा का भाव दोनों time (समय) में। ज़्यादा से परेशान रात में होते थे। रात में संभालना बहुत मुश्किल काम है। बहुत।
स्वरुप दामोदर, राय रामानंद दोनों। दोनों के साथ बातचीत करते थे। और दोनों तो थोड़ा। उनको तो नींद लगेगा ना। तो सोने के लिए अगर जाएंगे ना, गोविंद पास में बढ़ते थे। पाँव दबाते थे। कभी कभी सो जाते थे। गोविंद की जब सो जाते थे ना, महाप्रभु उछलंग लगाकर पूरा। कितना बड़ा, देखें ना आप कितना बड़ा boundaries (दीवार) है। महाप्रभु चले आते थे। यह प्रेम में रहते थे। प्रेम का जो दो विभाग मैं बोल रहा था, एक क्या है? विरह में, separation (विरह) में, separation (विरह) का भाव होता है। और मिलन में क्या होता है? separation (विरह) का भाव रहता हैं। विरह में विरह का भाव को अनुभव तो थोड़ा हम कर सकते हैं। लेकिन मिलन में जो विरह का भाव होता है, यह तो हम लोगों को पता नहीं है। जैसे जगन्नाथ जी को दर्शन करते थे। यह जो पत्थर है ना वो पिघल जाता था। और कोई जगन्नाथ जी का प्रसाद दे देते थे, महाप्रभु रोने लगते थे। हम प्रसाद पाल लेते हैं, रोते हैं? आनंद हो जाते हैं। मिल गया अब जगन्नाथ जी का प्रसाद। मिलन में आनंद होता है। ये प्रेम का एक विचित्र धर्म होता है। इधर ही महाप्रभु प्रकट किए हैं। श्रीखेत्र ऐसा एक धाम है। इसमें प्रेम का प्रकट हुआ है। तो इधर आने से, महाप्रभु का जो भाव है - ब्रजेश तनय स्वरूप से दर्शन करते थे कृष्णा को।
प्रायः तो महाप्रभु इधर जो है ना यह hidden, hidden (गुप्त) वृंदावन है। गुप्त वृंदावन का भाव इधर है। भाव है। हम गौड़ीय हैं ना। हमारा भाव प्रधान है। हमारा philosophy (दर्शन) में, हमारा दर्शन में, भाव छिप कर रहे हैं। इसको तो कोई पकड़ नहीं पकड़। पकड़ना साधारण लोगों के लिए असंभव है। जैसे रथ यात्रा होता है। होता है कि नहीं? हमारा भाव क्या है? रथ यात्रा जो होता है, हमारा भाव क्या है? वो शास्त्र से मिलेगा? इसीलिए लोग बोलते हैं - कहाँ वृंदावन ले जाना। गोपी लोग वृंदावन को ये कृष्ण को कुरुखेत्र में दर्शन किए हैं। और रथ में उनको खिंच कर कहाँ ले रहे हैं? उसको मिलाएंगे तो कहाँ मिलेगा? तो भाव की बात है। भागवत से भाव लाकर। महाप्रभु भगवान है ना। वो तो कृष्ण है ना। कृष्ण को पता है रथ यात्रा क्या तात्पर्य होता है। आप ढूंढने से मिलेगा नहीं। "कहां मिलता नहीं है" - लोग युक्ति करते हैं ना। आप ऐसे क्यों बोलते हैं? कहां यह सिद्धांत है? जो गौड़ीय लोग होते हैं, जो महाप्रभु के follower (आनुगत्य) होते हैं ना, यह महाप्रभु का भाव को पकड़ कर जाता है।
तो महाप्रभु इधर जब आते थे, ब्रज का भाव से। गुप्त भाव से। कहां कहां महाप्रभु जाते थे? बोलिए ना? महाप्रभु का जो prominent place (प्रमुख स्थान) था इधर, कौन सा कौन सा place (स्थान) था? कहां कहां महाप्रभु जाते थे? पहला? पहला महाप्रभु कहां जाते थे? मंदिर, जगन्नाथ जी का मंदिर। सिंहद्वार जो बोलते हैं ना। सिंहद्वार में जाते थे। पर भांग को पकड़ने बहुत मुश्किल है। महाप्रभु जो सिंगदद्वार जाते थे, तो क्या करते थे पहले? चैतन्य चरितामृत पढ़े हैं आप? "बाइस पहच" बोलते हैं ना इसको। left side (बाएं तरफ) में एक नरसिंहदेव है। दर्शन किए है आप कभी? काशी विश्वनाथ है, उसका आगे आइए left side (बाएं तरफ) में नरसिंहदेव। महाप्रभु उधर प्रार्थना करते थे। पूरा - नमस्ते नरसिंहाय। पूरा पढ़ाई करते थे। आप जाते हैं न left side (बाएं तरफ) पर देख लीजिए। पूरा बाइस पहच में दो तीन भाप आने से पहले, आ जाने के बाद left side (बाएं तरफ) में देखिए नरसिंहदेव। चैतन्य चरितामृत में यह प्रसंग है। महाप्रभु। अच्छा आप बोलिए, जय विजय? जय विजय को देखे हैं की नहीं? महाप्रभु जय विजय को पकड़ लेते थे और रोते थे। जा रहे हैं कुञ्ज, मिलाइये ना भाव। जो कुञ्ज जा रहे हैं, समझ रहे हैं ना? मंदिर क्या हुआ? कुञ्ज हुआ? तो जय विजय को क्यों पकड़ रहे हैं? जय विजय कौन है? वो तो ऐश्वर्य भाव। जय विजय वैकुण्ठ में रहने वाले हैं ना। कुञ्ज में कौन रहते हैं? ललिता विशाखा। तो महाप्रभु जब जय विजय को पकड़ते थे, कौन सा भाव में पकड़ते थे? हाँ? ललिता विशाखा भाव से। ये सखी है।
यह भाव कहां नहीं मिलेगा। गौड़ीय भाव जो है, गौरांग महाप्रभु जो भाव है, जो लोग नहीं पढ़ाई किए हैं, जो लोग गौर भक्त अनुगत्य में नहीं है, कभी समझ में नहीं आएगा। इसीलिए चैतन्य चरितामृत पढ़ के समझना बहुत मुश्किल है। जय विजय को महाप्रभु पकड़कर क्यों रोते हैं? मुझे दिखाओ राधा कृष्ण कहां है। नहीं सखी स्वरुप में दर्शन करते थे। और इतना विरह उछल आ जाता था महाप्रभु का अंतर में। तो नरसिंहदेव को क्यों प्रार्थना करते थे? बताइए ना आप? और हम लोग साधक हैं, हमारा बहुत विघ्न है, हम नरसिंहदेव को प्रार्थना करेंगे। नहीं motorbike (वाहन) चलाने से पहले, car (वाहन) में बैठने से पहले, कहाँ भी कुछ बोलते हैं - नरसिंहदेव को प्रणाम। ठीक है, हमारे आचार्य लोग बोले हैं। वो तो कुञ्ज जा रहा है। कुञ्ज का अंतर ना। तो उधर नरसिंहदेव को प्रणाम करने का क्या कारण है? हाँ?
नंद गाँव गए हैं? नंद गाँव गए हैं? हैं ना आप? उधर नरसिंहदेव देखे हैं? आप परिक्रमा नहीं किए हैं। जो परिक्रमा किया है, भीतर नंदा गांव के भीतर, नंद, गर्गाचार्य जी ने नंद बाबा के लिए नरसिंहदेव और वराह देव प्रतिष्ठा किए। भीतर है, गांव का भीतर। तो ये कैसे संभव है। ब्रजभूमि में कृष्ण। उनको पता है कृष्ण क्या है। गर्गाचार्य बोले हैं ना। "नारायण समगुणी' - तुम्हारा जो लड़का है वो नारायण के बराबर है। और ब्रजवासी लोगों ने देख लिया है। कितना विपद आये, कितना क्या क्या असुर लोग आए, सब कृष्ण सबको मार डाले। फिर नरसिंह को क्यों पूजा कर रहे हैं? बताइये। इधर ही समाधान होगा। अरे ब्रजवासी लोग जब विरह में उछल जाते हैं, जब प्राण धारण करना असमर्थ होता है, तब योगमाया ने उनको स्फुरण कर देते हैं। जैसे गोपी लोग। किसको पूजा किए हैं? कशी कात्यायनी पूजा किए हैं। कौन सा सिद्धांत हैं? तो हम लोग कात्यायनी पूजा करेंगे? हम शिव जी को पूजा करेंगे?
प्रेम में जब सर्वोच्च स्तर पर जाते थे। चले जाते हैं ना, वो इतना सोचते हैं कि मेरा पास कुछ नहीं है। हम, हम तो बिल्कुल हमारा। हमारा अंतर में कुछ भी प्रेम नहीं है, कुछ भी भाव नहीं है। जैसे कोई गरीब आदमी है ना, किसका चरण कमल को पकड़ लेता है? अब देखिए वो कभी भिखारी है ना, भिखारी, भीख मांगने वाले, दूसरे भीख वाले भीख मांगने वाले को मांग लेते हैं। "भाई तुम्हारा ज़्यादा हो गया, मुझे एक पैसा दे दो ना"। अरे तुम भीख मांगा हो, वो भी भीख मांगा है। यह अपना स्थिति को जब समझ लेते हैं, ना तब मांग लेते। दूसरे भीख मांगने लोगों को मांग लेते हैं। "भाई दे दो", दो रुपए।
प्रेम का ऐसा स्वरूप होता है, वो जब सर्वो स्तर पर चले जाते हैं ना, सोचते हैं कृष्णा हमे कभी नहीं मिलेगा। इस जन्म में कभी नहीं मिलेगा। इसीलिए कभी देवता लोग कोई पूजा कर लेते हैं। क्योंकि ऐश्वर्या का स्फुरण योगमाया नहीं करेंगे ना, शरीर पकड़ना मुश्किल हो जाएगा। शरीर छोड़ देंगे दसवीं दसा पर चले जाएंगे। ब्रज में कभी कभी जो देवता पूजा वगैरह है ना, इसका मतलब यही समझना चाहिए। महाप्रभु ऐसे भाव में इधर, इतना विरह में जाते थे। कौन जब, क्योंकि महाप्रभु कौन है? महाप्रभु कौन है? हैं? कृष्ण है, और राधा भाव है। जगन्नाथ कौन है? वो भी कृष्ण है। देखो वो राधा विरह में कृष्ण का यह रूप है। कौन सा रूप ?जगन्नाथ जी। राधा विरह में। और ये कौन है? चैतन्य महाप्रभु कौन है? वही कृष्ण है। जगन्नाथ भी कृष्ण है। तो कृष्ण को विरह में, जगन्नाथ जी का ये रूप है। sorry (क्षमा) राधा की विरह में कृष्ण का ये स्वरूप है। और गौर स्वरूप क्या है? गौरांग महाप्रभु क्या है? कृष्ण विरह में राधा ढूंढ रहे हैं। अंतगौरा वही कृष्णा। sorry (क्षमा), अंत कृष्णा वही गौर। बाहर से गौर है, लेकिन वो कृष्णा है। राधाण जैसे कृष्णा को ढूंढ रहे थे, महाप्रभु वैसे कृष्णा को ढूंढ रहे हैं। तो कृष्णा को जब ढूंढ रहे हैं, कृष्णा कहां है? मंदिर के भीतर ह। अच्छा वो तो राधा की, राधा को सोचते सोचते कैसे हो गए हैं? जगन्नाथ हो गए। ढूँढने वाले कौन है? राधा ढूंढ रहे हैं अभी। किसको ढूंढ रहे हैं? कृष्ण को। तब जगन्नाथ जी को जो महाप्रभु दर्शन कर रहे थे, क्या होता था? दोनों intense (प्रगाढ़), अंग्रेज़ी में बोलता था intense separation (प्रगाढ़ विरह)। क्या बोले? intense हिंदी में क्या बोलते हैं? प्रगाढ़। प्रगाढ़ विरह में दोनों का मिलन होता है। आप देखें कभी, बिछड़, बिछड़ गया है। एक लड़का बिछड़ गया है। एक साल, दो साल। लड़का ढूंढ रहा है मान लो। लड़का ढूंढ रहा है मेरा मां कहां है। और मां ढूंढ रहा है मेरा लड़का कहां है। दोनों का मिलन कभी देखें हैं? नहीं देखे हैं। देख लीजिए उसके बाद। थोड़ा पता चलेगा। इससे कोई करोड़ गुना है। राधा ढूंढ रहे हैं ना, कृष्ण कहां है। राधा ढूंढने वाले राधा कौन है? गौर है। और जगन्नाथ कौन है? वह seperation (विरह) में है। राधा को, राधा की भावना, ब्रजवासी लोग की भावना को पूरा अंतर में रखें हैं। और दोनों का मिलन हो रहा है। ये क्षेत्र यही है। समझ रहे हैं न आप।
two crying form (दो रोते हुए अवतार), हमारा गुरु जी कहा करते थे। union of two crying form (दो रोते हुए अवतारों का मिलन)। दोनों रोने वाले हैं, और दोनों का मिलन हो रहा है। कृष्ण रोते रोते ऐसा हो गया है ना? जगन्नाथ स्वरुप हो गए। और इधर गौरांग महाप्रभु। राधा रो रहे हैं। कृष्ण के लिए। ये क्रंदन क्षेत्र है। रोने का भाव पूरा इधर है। महाप्रभु रोते थे। बार बार। और ढूंढ रहे थे। आप चैतन्य चरितामृत में पढ़ लीजिए। महाप्रभु का भाव क्या, कितना उचाई भाव से महाप्रभु प्रकट किये। राधा का जो भाव प्रकट नहीं हुए थे, ब्रजभूमि में, इधर महाप्रभु विरह में इसको प्रकट किए। कभी कभी कौन सा शास्त्र में देखे हैं कि राधा रानी की, राधा रानी जब मूर्छा हो जाती थी, उनका हाथ पांव बहुत लंबे लंबे हो जाते थे। हैं? राधा रानी के होते थे? नहीं। महाप्रभ हाथ कितना, कितना, कैसे होता थे? यह जो joint (जोड़) है ना joint (जोड़) से निकल जाते थे। पांच हाथ, ऐसे लिखा है। इतना लंबे लंबे हो जाते थे। फिर फिर जी भीतर चले आते थे।
हिंदी में क्या बोलते हैं? शिम्बली? शिम्बली, औड़िया में शिम्बली बोलते हैं ना। हिंदी में क्या बोलते हैं? हां? शिम्बली का पेड़, शिम्बली का पेड़ पता होता है ना? आप cotton (रुई), cotton (रुई) का जो पेड़, इसको क्या बोलते हैं हिंदी में? कपास, कपास नहीं है। वो एक उधर नहीं है। हाँ, तो आपको क्या पता चलेगा। कपास तो ये अलग होता है। छोटा छोटा पड़ता है, बहुत बड़ा बड़ा पेड़ है हमारा इधर है। बहुत बड़ा बड़ा पेड़ है। वो एक क्या बोला? उसको बोलो natural (प्राकृतिक) एक cotton (रुई) है। उसका कांटा जो होता है ना। सिमर yes (हाँ), सिमर का कांटा। महाप्रभु जब विरह में रह जाते थे, जब रोते थे, जब मूर्छित हो जाते थे, उनका शरीर में जो लोम कूफ, समझ रहे हैं ना, जो कूफ है, लोम है, वह सिमर के कटा जैसा इतना बड़े बड़े हो जाते थे। महाप्रभु को समझना sorry (माफ़ कीजिये), महाप्रभु को देखकर समझना कि, यह चैतन्य महाप्रभु है ये संभव नहीं। कभी कभी पार्षद लोग भी विचलित हो जाते थे। प्रेम का ऐसा स्वरूप है। विवर्ण हो जाते थे। पुलकित, विवर्ण, ये तो अस्टसखीत्व भाव है। उसकी तो, महाप्रभ तो मादनाक्षय भाव में रहते थे। जैसे महाप्रभू, लम्प प्रदान किए थे। आपको पता है? मछली आप पकड़ते महाप्रभ को? पता नहीं आपको? ये सब लीला नहीं सुने आप?
महाप्रभू आ गए। रात्रि, रात्रि समय था, संध्या समय था। और चंद्रमा उग रहे थे। महाप्रभू का जमुना स्मरण आ गए। कृष्ण स्फोरन होता है ना। हम कृष्ण consciousness (चेतना) प्रभुपाद जी इतना शब्द दिए हैं ना। हम भक्त, समझ रहे हैं ना? भक्त तो बहुत लोग हैं। हम भक्त है नहीं। हम किसका भक्त हैं? हम कैसा? हमारा standard (स्तर) क्या है? कृष्ण consciousness (चेतना)। हमारा consciousness (चेतना) में, चेतना में, कृष्ण रहना चाहिए। जो भी related (संबंधित) करेंगे कृष्ण से। बाल हो, बच्चा हो, पैसा हो, घर हो, मंदिर हो, कृष्ण consciousness (चेतना)। इसको कृष्ण consciousness (चेतना) बोलते हैं। महाप्रभू का ये standard (स्तर) है। महाप्रभू का वह standard (स्तर) है। महाप्रभू देख लिए, जमुना स्फोरन आ गए, छलांग लगाए। बस समुद्र के भीतर गए, गए, गए, गए। स्वरुप दामोदर, राय रामानंद, गोविंद, सब ढूंढ रहे थे।
अच्छा मैं एक से रुक गया हूं। महाप्रभू कहां कहां जाते हैं, आपको पता होना चाहिए। पहले मंदिर जाते थे। मंदिर को कुञ्ज के भाव से दर्शन करते थे। कभी विरह आ जाते थे ना, तब इस दिशा में आते थे। टोटा गोपीनाथ, चटक पर्वत, गोवर्धन। बहुत बड़ा बालू का पहाड़ था। अभी तो गया सब। लोग ले जा रहे हैं। हां। आप गए थे ना उधर। महाप्रभू गोवर्धन भाव से आते थे। और भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद जी ने वही भाव को पकड़कर उधर ही आश्रम बनाया है। इसलिए उधर ही उनका भजन कुटीर है। आप देख लीजिए। तीसरा महाप्रभू कहां आते थे? जमुना ज्ञान में। समुद्र आते थे। seperation (विरह) में। गोपी लोग जैसे जाते थे, महाप्रभू इधर चले आते थे। और चौथा, कभी कभी कोणार्क दिशा में जाते थे। कोणार्क दिशा कौन, कौन side (भाग) में है? इस side (भाग) में है। क्यों कोणार्क दिशा में जाते थे? कोणार्क में कौन सा मंदिर है? सूर्य temple (मंदिर) है। महाप्रभू का कौन सा भाव आ रहा था? सूर्य पूजा, सूर्य कुंड नहीं दिखे हैं? गोवर्धन के पास। हां, सूर्य कुंड है। मध्यान्न में महाप्रू, राधाण जाती थी।
तो यह भाव है। महाप्रभू जमुना भाव में आ गए, जमुना का स्फुरण हुए, विरह से आ गए, समुद्र को दर्शन किए, जमुना भाव आ गए, छलांग लगाए, गए। सब ढूंढ रहे हैं। तो मंदिर ढूंढे, महाप्रभु नहीं मिले। चटक पर्वत गए, नहीं मिले। इधर आए, सब रोने लगे। सबका, सबका यह भावना हुआ कि महाप्रभु अप्रकट हो गए। तब, सब ढूंढ रहे थे, स्वरूपदामोदर उस दिशा में जा रहे थे। Beach (समुन्दर किनारे) में जा रहे थे। sea beach (समुन्दर किनारे) जो है ना, उसमें जा रहे थे। ढूंढ, ढूंढने के लिए, महाप्रभु कहां है, महाप्रभु कहां है। तो इसमें महाप्रभु ऐसे भाव में थे, "अंतरंग", इसमें "अंतरंग" समझ रहे हैं ना, क्या अंतरंग भाव क्या है? शरीर ऐसा ही पड़े रहे हैं। क्या? समुद्र का जो, क्या बोलते हैं? लहर। समुद्र का लहर में जाते थे, लेकिन "अंतरंग"। मुख प्रफुल्ल थे। ब्रज लीला रहते थे। जुमना में जैसे राधा और कृष्ण, गोपी लोग को लेकर जैसे, जल, जल क्रेड़ा करते थे ना, वही लीला स्मरण कर रहे थे।
और मछलियां ने, मछली पकड़ने वाले किसको? "मछवारी" बोलते हैं ना। मछवारी जाल में पकड़ लिया। उनको तो पता नहीं था, रात था, और जाल लगा दिया। जाल का भीतर महाप्रभु आ गए। वो सोच रहा था कि बहुत बड़ा मछली मिल गया। वो बहुत खुश थे। कि उनको पता होता है ना, वो जब खींच रहे हैं तो, "अरे इतना भारी हो रहा है, बहुत बड़ा मछली है"। तो ले आए। रात का time (समय) था। और महाप्रभु जब वो जो जाल है, उसको थोड़ा सा निकाल कर जब महाप्रभु का स्पर्श हो गया, गया। क्योंकि महाप्रभु अंतरंग भाग में थे ना। और प्रेम transfer (स्थानांतरित) हो जाते हैं। प्रेम जो होता है ना, ऐसा होता है ना, कैसे होता है। ये प्रकट होता है। ऐसे स्थानांतरित होता है, वो देखिए भाव। तो वो नाचने लगे, रोने लगे, अस्ट सात्विक भाव विकार आ गया।
वो सोच रहे थे कि भूत है। ये बड़ा भूत है। कि भूत लग गया। क्यों उनके consciousness (चेतना) गया ना, पूरा कृष्ण consciousness (चेतना) वो रोने लगे। नाचने लगे। तो रोते हैं, नाचते हैं, और इस दिशा में आते थे। और स्वरूपदामोदर गए। स्वरूपदामोदर देख लिया, वो मछवारे को उनको पता है। बोलने लगे - तुम देखो कोई बाबा जी समुद्र में, क्या तैर रहते हैं, या भीतर है, तुमको पता है? क्या? बाबा जी नहीं। मैं तो कुछ नहीं देखा हूँ, एक बहुत बड़ा मछली, मछली नहीं एक आदमी को मैं देखा हूँ। और ये शायद भूत हैं। मैं उनको स्पर्श कर लिया हूं। उसके बाद गया मैं तो रो रहा हूं। मैं तो कीर्तन जैसा कीर्तन कर रहा हूं। मुझे मुझे मेरा तो शरीर गया पूरा बिल्कुल। तो तो स्वरूपदामोदर ने symptom (लक्षण) देख लिए। प्रेम का स्वभाव है। अरे उनका तो अस्ट सात्विक भाव विकार हो रहा है। ये तो संभव नहीं है। ये मछुआरे है, मछली पकड़ने वाले हैं, उसका अस्ट सात्विक भाव विकार कैसा हो गया? महाप्रभु का स्पर्श किया। "कोई, चलो ना भूत कहां है?"। "कोई, मत जाओ। "वो भूत ऐसा है या ना, ब्रह्मभूत है। भूत चढ़ाने के लिए नरसिंह, नरसिंह मंत्र लेना पड़ता है। लेकिन वो ऐसा भूत है जब मैं नरसिंह मंत्र करता हूँ ना, वो ज़्यादा मुझे पकड़ लेता है। स्वरूपदामोदर मेरे को पूरा confirm (पुस्टि) हो गया कि चैतन्य महाप्रभु है। ये चैतन्य महाप्रभु है। बोले - चलो तुम, चलो। तब लेकर गए। तब देखने लगे महाप्रभु रोने लगे। कौन सा भाव में महाप्रभु थे? तो स्वरूपदामोदर ललित हैं न, पकड़ लिए। अच्छा ब्रज भाव में हैं। तब पकड़ लिए। तब स्वरूपदामोदर ने उनको दो थप्पड़ लगाए। लगाए दो तीन थप्पड़। बोले तुमको पता नहीं है, मुझे पता है। यह भूत को छुड़ाने के लिए कौन सा मंत्र है। दो तीन चार थप्पड़ लगाए, वो consciousness (चेतना) आ गया। समझ रहे हैं ना? वो तो प्रेम दिए थे चैतन्य महाप्रभु। अभी वो भक्त से प्रेम प्राप्त कर रहे हैं। भक्त की कृपा हो गया, अभी थम गया थोड़ा। तो बोले - ठीक है। तो हम महाप्रभु देखे दिखने लगे। और महाप्रभु के कर्ण में ललिता, विशाखा, जैसे राधाणिकी कर्ण में मंत्र देते हैं। हरे कृष्ण महा मंत्र करते थे। हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
ऐसे स्वरूपदामोदर गोस्वामी ने महाप्रभु के कर्म में, धीरे धीरे धीरे धीरे और महाप्रू consciousness (चेतना) में आए। कौन सा भाव से आए? अंतरंग भाव से अर्धबाहेर दशा। तीनों दशा है ना। अंतरंग दशा है, अंतर दशा है, बहिर दशा है, और अर्धबाहेर दशा है। half external consciousness stage (अर्ध बाहिर चेतना) में है। तो महाप्रभु रोने लगे। स्वरूपदामोदर तुमने क्यों मुझे ले आए हो? मैं तो जमुना में गए थे। कृष्ण मुझे बुलाए थे। महाप्रभु फिर बोलने लगे ऐसे। तो ये जो श्रीखेत्र धाम है ना, इसमें प्राधान्य भाव से हम देखेंगे ना, ब्रज का जो भाव है, secret (गुप्त) भाव से ही है। गुहिया भाव से ही है इधर। जगन्नाथ का स्वरूप क्या है? "राधा, विरह, बिधुरा" विरह में बिधुर। समझ ना ना? बिधुर, क्या ऐसे, क्या आप उसे हिंदी में कैसे बोलते हैं आप लोग? मुझे तो पता नहीं होता है। जैसे कोई मां का बछड़ा, समझ रहे हैं ना बछड़ा चला गया कहाँ। देखे हो? गायों को देखे हो कैसे खाती है? कुछ भी करती है ना, उनका वो बछड़ा का चिंता होता है।
स्तन्यं यथा वत्सतरा: क्षुधार्ता: । (-- ŚB 6.11.26)
वृत्रासुर जो लिखे है ना, वही भाव है। और ये महाप्रभ इधर रहते थे। time (समय) हो गया है। तीन मिनट फिर बोल रहा है, मुझे जाना है ना उधर। open dial (संस्था) कथा है। तो, अंग्रेज़ मंडल में कथा है। इधर बहुत दूर है। हम कैसे जाएंगे?
ये जो विरह भाव दो है, श्रीकत्र में मिलन में विरह है, और विरह में फिर मिलन है। separation (विरह) में, separation (विरह) जो विरह भाव होता है ना, जैसे महाप्रभु इधर चले जाते हैं, गोवर्धन भाव से। चट पर्वत में चले आते हैं, समुद्र चले आते हैं।
और कभी कभी और एक स्थान जाते थे। कहां है वो? भूल गया बोलने के लिए। हरिदास ठाकुर को दर्शन करने के लिए, प्रसाद देने के लिए जाते थे। प्रसाद लेकर हरिदास ठाकुर को बोले है ना पहले से कि, हरिदास बोले - मैं कभी मंदिर तो नहीं जाऊंगा। महाप्रभु को पता है, बोले ठीक है, तुम इधर रहो। जगन्नाथ जी को दर्शन करने के लिए तुम जाना ज़रूरत नहीं, जगन्नाथ जी हर दिन आऐंगे तुम्हारे पास। ऐसे नहीं बोले। बोले कि ठीक है, इधर नीला चक्र को दर्शन करो। जगन्नाथ जी, वो जगन्नाथ है ना। वो खुद आ रहे थे। और उनको खुद ही प्रसाद दे रहे थे। महाप्रभु कभी कभी जाते थे उद्यान - जगन्नाथ बल्लव। जगन्नाथ बल्लव जो है ना, जो उद्यान, इसमें महाप्रभु घुसते थे। सखी लोग जैसे विरह में पूछते थे ना। दूसरा दूसरा पेड़ होता है, पौधा। क्या बोलते हैं उसको? फ़ूल, फ़ूल, फ़ूल पेड़ होता है न? लता होता है। लता पत्ता को पूछते थे। सखी लोग जैसे पूछते थे - तुमको पता है मालती, मालती फ़ूल है न? हिंदी में मालती क्या बोलते हैं? मालती, मल्ली, मल्ली, जस्मिन अंग्रेजो में। हिंदी में कुछ मल्ली फूल नहीं हैं? मुगरा, मुगरा, मुगरा को आप बोलेंगे - राधा कहाँ है, बोलेंगे? कृष्ण कहाँ है, बोलेंगे? हाँ। तो, तो ऐसे महाप्रभु कभी कभी जगन्नाथ, जगन्नाथ बल्लव जाते थे। और जगन्नाथ बल्लव उद्यान में, महाप्रभु विरह से ऐसे पूछते थे। पेड़ को पूछते थे, पौधा को पूछते थे। ये सब कौन सा भाव है? आप चैतन्य चरितामृत पढ़ लीजिए, देखेंगे। यह कौन सा भाव है? वही ब्रज का भाव है। गोपी लोग जैसे विरह में ढूंढते थे।
तो आप लोग इधर आए हैं, जगन्नाथ जी का दर्शन करने के लिए। लेकिन यह हमारा भाव है। गौर भाव हृदय में रखना चाहिए। बार बार महाप्रभु महाप्रभु भक्त को प्रार्थना करना चाहिए। गौड़ीय में, जो हमारा जो गौड़ीय भाव में, सबसे बड़ा भाव क्या है? प्रभुपाद जी क्या बोले है?
प्रभुपाद जी का lecture (व्याख्यान) कौन हर दिन सुन रहा है? few devotees (कम भक्त)। ये आपको सुनना पड़ेगा। बहुत ज़रूरत है। आजकल इतना कथा बोलने वाले हैं। ये कथा सुनते सुनते आप, आप किसका ऊपर faith (भरोसा) नहीं करेंगे। बुरा मत मानिए। क्योंकि इतना सुनेंगे ना, उसके बाद confuse (संसय) में आप आ जाएंगे। वो एक बात बोल रहे हैं, वो एक बात बोल रहे हैं, वो एक बात बोल रहे हैं। ठीक है, जो भी बोल रहे हैं उनका निष्ठा पर बोल रहे हैं, उनका स्थिति पर बोल रहे हैं, आप क्या करेंगे? speaker (वक्ता) जो है ना, जो प्रवचन दे रहे हैं, उनका स्थिति जो है, क्या आपका स्थिति वही है क्या? नहीं है। तो आप क्या करेंगे? आपका position (स्तिति) क्या है? इसीलिए योगाचार्य जो बोले हैं ना, उनको पहले। दूसरे से सुनिए, लेकिन पहले प्रभुपाद जी का किताब, प्रभुपाद जी का lecture (व्याख्यान) अच्छे से सुनना चाहिए। तब तो conclusion draw (निष्कर्ष) कर सकते हैं। नहीं तो भटकेंगे। आप तो सुनते। प्रभुपाद का चीज़ नहीं सुनते हैं। तो किसी, जिससे सुनते हैं, उसका ऊपर अगर doubt (संदेह) आ गया, तो कृष्ण भावनामृत छोड़ देंगे। निश्चित नहीं, तो कहां चले जाएंगे। प्रभुपाद जी क्या लिखे हैं? प्रभुपाद जी लिखे हैं - हमारा जो गौड़ीय भाव में separation prominant (विरह प्राधान्य) है। विरह भाव prominent (प्राधान्य) है। जैसे हम हरे कृष्ण महामंत्र करते हैं, करते हैं कि नहीं? जैसे आप लोग नृत्य करते थे, अभी हो रहा था ना। नर्तन करते थे, गान होता था। लेकिन हमारा mood (भाव) क्या है? विरह। प्रभुपाद इसमें गोस्वामी लोग उदाहरण देते थे। उनके lecture (व्याख्यान) में।
सनातन गोस्वामी के पास कौन आए थे? मदन गोपाल। रूप गोस्वामी के पास कौन आए थे? राधा गोविन्द। मदन मोहन, राधा गोविन्द, गोविन्द देव आए थे। लेकिन उनका भाव क्या था - "अराधे प्राजदेवी चलिते"
हम कृष्ण को प्राप्त कर लेते हैं ना, फिर वो हमारा विरह प्राधान्य रहता है। कभी नहीं हम मानते, कि मुझे कृष्ण मिल गए। यह प्रेम का स्वरूप है। तो हम जब नृत्य करते हैं, हमारा विरह आता है? हम को आनंद लगता है। ठीक है, यह कोई बुरा चीज़ नहीं है। लेकिन हमारा विरह प्राधान्य है। जैसे महा मंत्र कर रहे हैं। महा मंत्र जो हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। chanting (जप) कर रहे हैं। तो chanting (जप) कौन सा principal (सिद्धांत) को लेकर करना चाहिए? शिक्षाष्टक में एक verse (श्लोक) को लेकर करना चाहिए। कौन सा? "तृणद अपि" कैसे होंगे? भीतर, भीतर, पूरा भीतर False Ego (अहंकार) है, तृणद अपि हो जाएंगे ऐसे?
अयि नन्दतनुज किंकरं
पतितं मां विषमे भवाम्बुधौ।
कृपया तव पादपंकज-
स्थितधूलिसदृशं विचिन्तय |
ये भाव, इसके बाद नामनाम अकारी बहुदा। उसके बाद नाम का महिमा। भाव तो ये होता है।
अयि नन्दतनुज किंकरं
पतितं मां विषमे भवाम्बुधौ।
मैं गिर गिरा हुआ ठाकुर जी। मैं गिरा हुआ आदमी हूँ। में गिरा हुआ आदमी आपका नाम ले रहा हूँ। ये भाव। हम लोग का भाव यही है। गौड़ीय भाव यही है। हम कृष्ण को प्राप्त कर लेते हैं, फिर भी सोचते हैं मुझे कृष्ण नहीं मिला है। जब भी महामंत्र करते हैं, जब भी कीर्तन करते हैं, महाप्रभु ऐसे नहीं करते थे। जगनाथ जी का रथयात्रा में महाप्रभु क्या करते थे? क्या करते थे? नृत्य करते थे कि नहीं? करते थे। और रोते थे कि नहीं? तो आप नृत्य कीजिए, और रुईए। मुझे देखना है। आ जाओ। अरे रोने वाले बैठ जाएंगे। जो रोते हैं ना वो बैठ जाता है। नहीं तो खड़ा होता है, नहीं तो सो जाता है। रोने का समय शरीर का हालत क्या होता है? strength (ताकत) नहीं मिलता है ना। मिलता है? रो कर देखिए ना। यह हमारा, हमारा जो रोना धोना है ना, यह तो material (भौतिक) है ना। कुछ नहीं मिल रहा है, इसीलिए कामना पूर्ति नहीं हो रहा है, इसीलिए रो रहे है। इसलिए हमारा strength (ताकत) नहीं और बल नहीं है। लेकिन महाप्रभु जो रो रहे थे, प्रेम का बल है। मिलन में seperation (विरह)। जगन्नाथ जी को दर्शन कर रहे थे, रथ यात्रा हो रहे हैं, कीर्तन हो रहे हैं, फिर रो रहे हैं। मिलन में विरह है। यह विचित्र है। विचित्र भाव है। ब्रज भाव का उदित स्मरण महाप्रभु के मानसपट में उदित हो रहा था। अच्छा, अच्छा, अच्छा। गोपी लोग ऐसे ही महाप्रभु को कीर्तन, कृष्ण को कीर्तन करके ब्रज भूमि को वापस ले रहे हैं। कुरुक्षेत्र से। महाप्रभु का भाव यही है। विरह रहता है, और क्या है? विरह भाव से सब कुछ हम करते हैं। तो यह जो धाम है श्रीखेत्र धाम है, इसका सब बड़ा secret (रहस्य) यही होता है। क्या होता है? विरह भाव। separation (विरह)। और यह कहां प्रकट हुए हैं? इस क्षेत्र में, सर्वोच्च जो प्रेम है, राधा रानी की जो सर्वोच्च प्रेम है, कहां प्रकट हुए हैं? "गंभीरा"। इसका नाम क्या है - गंभीरा। इसमें गंभीर लीला है।महाप्रभु राधारानी। जैसे रोते थे। राधा रानी जैसी राधा रानी की हालत थे, ऐसे ही। तो आप लोग हो गया ना? हैं? तो हमारा english class (अंग्रेजी कक्षा) है ना, तो मैं अब नहीं जा सकता हूं। तो एक मैं वो इसके लिए बोला हूँ, एक class (कक्षा) उधर एक class (कक्षा) है। और पांच किलोमीटर (दूर) में class (कक्षा) है। ये संभव नहीं होता है। तो, हाँ, हाँ, ठीक है, ठीक है, ठीक है, ठीक है, मतलब एक class (कक्षा) उनको बोल दीजिये। अंग्रेज़ी, अंग्रेज़ी पूर्व section (श्रेणी) को बोल दीजिए नहीं जा सकता हूँ। ना। दस मिनट और दस मिनट के बाद जाएंगे। तो मैं दस मिनट बोल देता हूँ।
देखो ये जो विरह भाव रहता है, एक, एक आप लोग जगन्नाथ जी का ज़्यादा story (कहानी) सुनते हैं न। आज कल तो story (कहानी) सुनने के लिए बहुत पसंद होता है। आज कल तो मैं ज़्यादा story (कहानी) नहीं बोलता हूँ। मुझे पता है सब। सब नहीं, कुछ कुछ पता है। एक जगन्नाथ जी का भक्त रहता था इधर।
देखो विरह में कैसे जगन्नाथ जी रीझ जाते हैं। प्रेम का होता है। प्रेम का इस क्या बोले संबंध हो जाता है।
तो एक वक्त रहता था। इधर से कितना दूर होगा? twelve mile twelve mile (बारह कोस) कितना किलोमीटर होगा? बारह mile (कोस) हां? हां। उतना किलोमीटर। आप बारह mile (कोस) है। हां। २० किलोमीटर, 22 किलोमीट मान लो। वो उतना दूर, हर दिन जगन्नाथ जी को दर्शन करने आते थे। ब्राह्मण थे। "पद्मनाव" उनका नाम था। वो हर दिन आते थे। हर दिन आऐंगे जगन्नाथ को दर्शन करेंगे, जगन्नाथ का तुलसी लेंगे, उसके बाद वो वापस जाएंगे, घर में जाकर भोजन करेंगे। और बीच में भारगवी नदी। नदी अब देखें हैं न? दंडभागा का पास जो भारगवी नदी है, वो नदी को पार करके आते थे। हर दिन। devotees are so determined (भक्त कितने दृढ़ निश्चयी होते हैं)। अभी तो हम लोग का कुछ नहीं है। अभी लोग मंदिर जाना कुछ करना। कोई संकल्प नहीं है जीवन में। कुछ कर लेते हैं, कर लेते हैं, कुछ दिन कर लेंगे फिर छोड़ देंगे। आज हो रहा है, होता जाएगा, कल कुछ होगा फिर छोड़ देंगे। सिद्धि मिले या नहीं मिले, साधन को पकड़ कर रहना है। यह हमारा सिद्धांत है। सिद्धि तो देने वाले कृष्ण देंगे। साधन को पकड़ कर रहना है। अभी साधन करने के लिए हम लायक नहीं है। अभी इतना Fallen (पतित)। कोई determination (निश्चय) नहीं रहता। मुझे मंगलार्ति जाना है, मुझे गुरु पूजा जाना है, मुझे भागवत हर दिन पढ़ना है। वो हर दिन आ रहे थे। चाहे बाढ़ हो जाए, नदी में कितना ही पानी है बरसात है, ठंडी है। वो आएगा, जगन्नाथ जी को दर्शन करेगा, फिर क्या वापस जाएंगे। और तुलसी लेकर। जगन्नाथ जी को चरणामृत को लेकर वापस जाएंगे, तो भोजन करेंगे। हर दिन। हर दिन ऐसे जाते थे। तो एक दिन आ गए, बहुत बाढ़ का time (समय) था। बहुत पानी था। ओडिशा में बाढ़ बहुत आते हैं। समुद्र में पानी फ़ूल हो जाता है ना, तो नदी में जो पानी है, वो इधर नहीं आता है, तो पानी ऊपर जाता है।
तो आ गए। वो बुला रहे थे नदी पार करने के लिए। नौका का क्या ज़रूरत होता है। नाव का ज़रूरत होता है। वो नाविक को बुला रहे थे। तुम कहाँ हो आ जाओ, आ जाओ, मैं जगन्नाथ जी का दर्शन करना है। वो नाविक को तो नहीं थे। इतना बाढ़ में कौन नाव चलाने जाएगा। तो रोने लगे। "जगन्नाथ जी, मैं क्या आज दर्शन नहीं करूँगा?। "जीवन में हर दिन में दर्शन करता हूँ"। "तो आपको दर्शन नहीं करूँगा तो क्या करूँगा?" ऐसे इधर बैठ कर रहता हूँ मैं। भोजन तो नहीं कर सकता हूँ। भोजन करना बड़ा बात नहीं होता है। बड़ा बात है, आपका दर्शन। तो ऐसे रोने लगे, रोने लगे, तो पांच मिनट के बाद वो देखने लगे। तो ये लकड़ी आ गए। लकड़ी, लकड़ी नहीं है, लकड़ी जैसा आ गया। उनको दिखाई नहीं दे रहा था। ऊपर पानी में पानी का भीतर जब लकड़ी जाता है ना, थोड़ा ऊपर दिखाई देता है और भीतर थोड़ा। तो वो लकड़ी समझ कर आ गए। तो उनका पैर रख दिए। लकड़ी कोई नहीं थे, वो जगन्नाथ जी का नाम कर रहे थे। वो इस side (तरफ) में आ गए। नदी पार होकर चले आए। आए, जगन्नाथ जी को दर्शन करे, और वापस चले। जो वापस जा रहे थे, ऐसे भी बरसात हो रहा था, जगन्नाथ जी का दर्शन किए। जो वापस जा रहे थे, फिर उधर देखा कि वही लकड़ी है ना, उधर ही। उनको आश्चर्य लग रहा था। नौका जैसा इधर ही है। उधर गए, वो लकड़ी पर फिर खड़ा हो गए। और लकड़ी वो उधर चला गया। कौन side (तरफ), कौन side (तरफ) में? गांव का side (तरफ) में। समझ रहे हो? नदी ऐसा है। वो गाँव का side (तरफ) में आये, जगन्नाथ जी के दर्शन किए, फिर वापस गए वो लकड़ी उधर ही थे। कोई नाविक नहीं थे। तो उधर उस side (तरफ) में गए। वो गाँव के side (तरफ) में। तो गाँव के side (तरफ) में जब गए, आपको पता है? आप तो नदी में नदी के पास जब जाते हैं ना, नौका, नौका बोलते हैं? नाव, नाव चढ़ने के लिए थोड़ा कीचड़ रहता है। तो कीचड़ में जाना पड़ता है। तो उन्होंने सोचा कि क्या ये लकड़ी से तो। मैं कीचड़ को जब उतरने लगा ना, तब वो जल, वो तो लकड़ी नहीं था, वो मगर था। कुम्भीर, वो कुम्भीर था crocodile (मगरमछ) था। तो ऐसा छलंग लगाए। वो ऐसे ऊपर उठा, और ऐसे। भार्गवी का भीतर आए। तो वो जो वो जो पीछे देखने लगे, इतना बड़ा आवाज़ क्यों आया है? लकड़ी से इतना बड़ा आवाज़ नहीं आता है। तब देखने लगा कि वो jump (छलांग) लगा रहा है। वो छलांग लगा रहा था। तब देखा यह आ रही है। तो उनका तो आवेश था, विरह में था। separation (विरह) में था। कि मुझे जगन्नाथ है वो दर्शन करना है। उनको पता नहीं था किसका ऊपर पैर रख रहे हैं। कि हम तो अगर सचमुच कितना बड़ा strong boat (दृढ नाव) ले आए, चढ़ने से पहले देखना है, "भाई देखो, देखो, पानी गिरेगा कि नहीं"। "गिर जाऊंगा कि नहीं"। हमारा consciousness (चेतना) है ना। external consciousness (बाह्र्य चेतना) रहता है। Bodily concession (शारीरिक चेतना)। हम कहाँ भी जाए, ये शारीरिक चेतना हमारा पकड़ कर हमको खा रहा है। वो तो separation (विरह) में है। भक्त में जो विरह भाव में चले जाते है। हमारा क्यों Bodily concession (शारीरिक चेतना) नहीं जाता है। खाना पीना थोड़ा late (विलम्ब) हो जाता है तो गया, दिमाग गया। भजन गया, माला कहाँ रहता है। कुछ उपवास हो जाता है, दो दिन से पहले जन्माष्टमी है। एकादशी, एकादशी से दो दिन पहले mind (मन) काम करता है। एकादशी आ रहा है, क्या होगा, क्या होगा, क्या होगा। Bodily concession (शारीरिक चेतना) है, वो पकड़ कर हमको खा रहा है। शरीर हमको खा रहा है। लेकिन यह कैसा जाता है? यह शरीर, शारीरिक चेतना, ऐसा तप करो, कुछ भी करो, कितना भी diet control (भोजन सयम) करो, diet plan (भोजन प्रबंधन) करो, कुछ भी नहीं होता है। भगवान से भाव थोड़ा बढ़ जाता है, गुरु कृष्णा के सेवा, सेवा से जुड़ जाते हैं, उनका कृपा प्राप्त करते हैं ना, तो यह शरीर जो हमको पकड़ कर रखे हैं ना। वह धीरे धीरे छोड़ देता है। उनका चिंता हमारा चला जाता है।
तो विरह में थे। उनको तो उनको पता नहीं था कि किस में जा रहे हैं। उनको जगन्नाथ दर्शन करना है। तो आप मान लीजिए आप नदी में है ना, मैं एक लकड़ी भेज दूंगा आप चले जाएंगे? आप सोचेंगे डूब जाएगा। वो ऐसा कभी कुछ नहीं सोचे। विरह में थे। तो आ गए। तो उनको जब पता हो गया, क्या है, वो मगर है, crocodile (मगरमछ) हैं। तो गए। उनको बहुत दुख लगा। देखो जगन्नाथ जी कितना मेरे लिए परेशान हो रहे हैं। तो उस रात में वो सो गए थे उधर। तो गए बहुत दुख में थे। ये जगन्नाथ जी का योजना है। नहीं तो, मैं तो लकड़ी सोच रहा था ये तो मगर है। गए रात में सो गए। और रात में जगन्नाथ जी स्वप्न में आए। वो वो कितना, वो बचपन से ऐसे आ रहे थे। समझ रहे हैं ना। बुड्ढा हो गया। तो जगन्नाथ जी उनको बोल रहे थे कि तुमको और आना नहीं होगा। जैसे सनातन गोस्वामी ने उस time (समय) बोले थे न, तुम परिक्रमा नहीं करना पड़ेगा। उनको ऐसे बोले। तुमको साधन करने का कोई ज़रूरत नहीं। इतना दूर तुमको आना नहीं पड़ेगा। तुम ऐसा करो, कल रात में, इसको क्या बोलते हैं हिंदी में? उड़िया में ऊल नड़ा, कण कहन्ति (ओड़िआ - क्या बोलते हैं?) हिंदी में क्या बोलते हैं उसको? तुमको भी पता नहीं है? अरे तुम हिंदी zone (क्षेत्र) में बोलते हो, तुम उड़िया आदमी तुमको पता नहीं है? हाँ? क्या बोलते हैं? अजह। जो भी हो आप लोग समझ जाइये। धान काट लेने के बाद, पिटाई कर लेने के बाद। और पहले ज़माने में, हमारा उड़ीसा में ऐसे है। हाँ? जो भी हो, आप समझ लिए ना। उसको हम एक स्थान पर रखते हैं। क्योंकि? बरसात में आएगा, बरसात आएगा ना। बरसात में उसको गाय को खिलाएंगे। कभी कभी cooking (रसोई) करते हैं गरीब आदमी। उसको cooking करते हैं। एक स्थान पर रखते हैं। मंदिर जैसा बनाकर। हां? उसको रखते हैं। और उनका बाड़ी, उनका जो बाड़ी था, उनका बाड़ी में बहुत दो तीन ऐसा बड़ा बड़ा गद्दा था। उसको गद्दा ओड़िआ में बोलते हैं। बहुत बड़े बड़े, हां, पहाड़ जैसा था। और जगन्नाथ जी स्वप्न से बोले - देखो कल से तुमको नहीं जाना होगा। तुम जाओ जो पोवाल है, ये गद्दा है, जो पहाड़ जैसा है, उसका भीतर उसको खोलो। मेरा तीन मूर्ति तुमको प्राप्त होगा। मेरा तीन deities (विग्रह) दो स्थान पर अभी जगन्नाथ जी। खुद खुद गए। दो स्थान है। आप नहीं गए हैं, मैं भी नहीं गया हूं। सिर्फ पढ़ाई किया हूं। कोशिश कर रहा हूं जाने के लिए। थोड़ा दूर है। तो उधर निकले। और सुबह सुबह वो तो जग गए वो। वो मानने लगे ये तो स्वप्न है। सचमुच ऐसा क्या जगन्नाथ जी वो पोहल का गद्दा का भीतर मिलेगा क्या? सुबह सुबह नाहा लिए और गए। और जब देखे उसको तो पूरा खोल दिया। सब पोवाल को सब इधर उधर किए तो देखे, सुंदर बहुत बड़े बड़े deities (विग्रह) हैं। तब उधर एक मंदिर बना है। और जो पूरी थे, पूरी के राजा जो थे ना, उधर जितना ज़मीन है, गांव का जितना ज़मीन है, उसको राजा नाम को दे दिए। यह जगन्नाथ जी। दो स्थान ऐसा है। जगन्नाथ जी के पास एक है 30 किलोमीटर एक है। 25 किलोमीटर। यह तो ३०, ३० नहीं यह १८ किलोमीटर ऐसा होगा।
तो मैं यही बोल रहा था देख लीजिए। जब भक्त का ऐसा भाव, विरह भाव रहता है, कृष्ण मुझे। जैसे चैतन्य महाप्रभु बोलते थे - कहां कृष्ण है? कहां मोर प्राणनाथ बृजेन्द्र नंदन। कृष्ण कहां है? हम अब जो भजन कर रहे हैं, धाम परिक्रमा कर रहे हैं, गुरु का सेवा कर रहे हैं, जो कुछ कर रहे हैं ना, कृष्ण प्राप्ति के लिए। लक्ष्य यही है। हमारा लक्ष्य क्या है? प्रयोजन क्या है? प्रयोजन है - कृष्ण प्रेम। प्रेम नहीं होते, कृष्ण नहीं मिलते। हम बोलते मुझे कृष्ण चाहिए। नहीं कृष्ण, कृष्ण प्राप्ति के लिए absolute necessary (अत्यंत आवश्यक) क्या है? क्या योग्यता होना चाहिए? प्रेम। प्रेम। हमारा लक्ष्य क्या है? हम जो साधन कर रहे हैं, किसके लिए? हम जो हरे कृष्ण महामंत्र जप कर रहे हैं। जैसे परिक्रमा कर रहे हैं, किसके लिए? प्रेम के लिए। तो कृष्ण प्रेम कौन देते हैं? कृष्ण प्रेम कौन देते हैं? कौन बोले राधा रानी? हां आप ब्रजवासी। ब्रज वृन्दावन में रहते हैं ना। कृष्ण प्रेम राधा रानी देती है। तो राधा रानी direct (सीधे) दे देंगे आपको? हां? नहीं देते हैं। जो राधा रानी का निजी, खुद का क्या बोले, पार्षद है, खुद का आदमी है। distributor (वितरक) होते हैं कि नहीं? क्या आप जो, आपका कौन सा कार है? टाटा कंपनी का जो कार है, क्या कंपनी से आप लाए हैं? आप बोलेंगे मैं जाऊंगा टाटा का Owner (मालिक) अभी कौन है? कौन सा टाटा? रतन टाटा? तो रतन टाटा को call (संपर्क) कीजिए मुझे दे दियो tata safari (वाहन),? आपको दे देंगे owner (मालिक) तो वही है। distributor (वितरक) होता है ना। distributor (वितरक) फिर distributor (वितरक) का level (स्तर) होता है। मुझे तो इतना पता नहीं, मैं बड़ा आदमी नहीं हूं। आप यह सब बड़े आदमी है, पुछ लीजिए distribute (वितरण) कैसे होता है। अगर head (मुख्य) कोई india (भारत) का कोई distributor (वितरक) होगा ना। head (मुख्य) बोले हैं। वो फिर state wise (राज्य स्तर पर) देते हैं state wise (राज्य स्तर पर) से फिर आपका आपका क्या बोला city (शहर) में आता है। city (शहर) में, city (शहर) से फिर आप कर देंगे।
कृष्ण प्रेम के लिए, कृष्ण प्रेम से कृष्ण मिलते है। और प्रेम किसका धन है? राजधानी की धन है। राजधानी कैसे प्रेम देती है? उनके distributor (वितरक) कौन है? परंपरा आचार्य लोग जैसे ना wholesale distributor (वितरक) होते है ना, बोलते है ना। क्या बोलते हैं? Sub distributor (लघु वितरक) होते है, wholesale distributor (वितरक) होते हैं। उनसे लाते है ना। वैसे परंपरा आचार्य, सडगोस्वामी लोग पहले आए। राधा कौन है? राधारानी आप बोल रहे हैं, आप आप जो बोल रहे हैं सही है। राधारानी प्रेम दे सकते हैं। तो कलियुग में राधा कौन है? महाप्रभु है। तो महाप्रभु distribute (वितरण) किसके माध्यम से कर रहे हैं? ताण्डेर चरण सेवी। प्रभुपाद जी कितना बार बोले हैं।
ताण्डेर चरण सेवी
भक्त सने वास,
जन्मे जन्मे मोरे अभिलाष (-- श्रीला नरोत्तम दास ठाकुर जी द्वारा रचित - हरी हराय नमः)
वन्दे रूप-सनातनौ रघु-युगौ श्री-जीव-गोपालकौ (-- श्रीनिवास आचार्य द्वारा रचित श्री श्री षड-गोस्वामी-अष्टक)
इसलिए प्रभुपाद देख लीजिए गुरु परंपरा में। षड-गोस्वामी को रखें हैं। आचार्य लोगों को रखें हैं। क्यों रखें हैं? वो distributor (वितरक) हैं। हमको लेना है न। उनका पास जाना है। कृष्ण प्रेम प्राप्ति करना है, उनका पास जाना है। ये हमारा सिद्धांत है।
तो हम परिक्रमा आते हैं, सेवा करते हैं, मंदिर में सेवा करते हैं, कहाँ भी जाते हैं। तो लक्ष्य यही होता है, कि कैसे गुरु, आचार्य लोग को प्रसन्न करना। समझ रहे हैं ना आप। तो जगन्नाथ जी का तो यह धाम है। सात बज गए। जगन्नाथ जी का ये धाम है। तो आप लोग आए हैं। जगन्नाथ जी का सबसे सुंदर धाम में। सबसे सुंदर जगन्नाथ जी का। कौन सा सबसे सुंदर क्या बोले? ये सबसे आकर्षण जगन्नाथ का कौन सा, कौन सा चीज़? आपको बहुत आकर्षण लगता है? क्या बोले? आँख है? हाँ, तुमको आँख अच्छा लगता है? देखना अच्छा है? लेकिन जगन्नाथ की कौन सबसे आकर्षण है? कौन क्या है जगन्नाथ जी का? महाप्रसाद। महाप्रसाद। इन्द्रद्युम्ना ने यही प्रार्थना किए थे। कलियुग के आदमी है ना। खानापीना नहीं होगा तो भजन नहीं होगा। ये गला, जो माली गुरुजी, गुरुजी माली दिए है ना। भोजन नहीं होगा, आश्रम का व्यवस्था नहीं होगा, तो माली गुरुजी को हम दे देंगे। गुरुजी आज से तुम मेरे लिए माली करो। हम लोग ऐसे हैं। और इन्द्रद्युम्ना ने जब प्रतिष्ठा किए, तब तो उनको पता था कि कलियुग के आदमी के लिए एक कृपा ज़रूरत है। प्रसाद का मतलब क्या होता है? कृपा।
प्रसाद-सेवा करिते हय,
सकल प्रपंच-जाय (-- श्रीला भक्तिविनोद ठाकुर)
प्रसाद सेवा है। प्रसाद का taste (स्वाद) हम नहीं लेते हैं। taste (स्वाद) लेने वाले कौन हैं? जगन्नाथ। समझ रहे हैं ना? कुत्ता जब, कुत्ता झूठा जब खाते हैं, क्या कैसे खाते हैं? taste (स्वाद) लेते हैं? मेरा मालिक भोजन किए हैं, इसी भाव से वो खाते हैं। कुत्ते को, कुत्ते नहीं रखे हो ना? अच्छा है। नहीं रखे हो तो। तो देख लीजिए कुत्ता का भाव। नहीं रखना चाहिए। devotee (भक्त) लोग कुत्ता कभी नहीं रखना चाहिए।
तो मालिक जब कुछ देता है ना, किसको? कुत्ता को देता है। चाहे झूठा दो, चाहे cooking food (रसोई में पका भोजन) दो। वह क्या सूझता है? मेरा मालिक का है। तो प्रसाद जब जगन्नाथ जी का। ये ये भाग्य होता है। जगन्नाथ जी का जो प्रसाद हम लेते हैं ना, बहुत कब जगन्नाथ जी का प्रसाद हो, हमारा मंदिर का प्रसाद हो, इसमें consciousness (चेतना) ऐसे रहना चाहिए। ये जगन्नाथ जी का क्या है? ठाकुर जी का क्या है? कृपा है। Mercy (कृपा) है। वह taste ले रहे हैं। वो क्या बोलें? Enjoyer (भोक्ता) है। हम तो enjoyment (भोग) नहीं कर सकते हैं। लेकिन हमारा यह भजन इसीलिए नहीं हो पा रहा है, कि enjoying mood (भोग वृति) हमारा है। सब में भोग करना है। कीर्तन करते हो enjoying mood (भोग वृति), प्रसाद लेते हैं enjoy (भोग) करते हैं। अरे अच्छा है। हम enjoy (भोग) करते हैं। नहीं, नहीं चैतन्य महाप्रभु का भाव ये नहीं है।
जब महाप्रभु, चैतन्य चरितामृत में आप पढ़ लीजिये। महाप्रभु को जब पुजारी लोग लाकर प्रसाद देते थे न, महाप्रभु रोते थे। प्रसाद पकड़कर रोते थे। ये जगन्नाथ ये प्रसाद लिए हैं। फैलाब, महाप्रभु बार बार बोलते थे। फैलाब, फैलाब। उचिष्ट है। समझ रहे हैं ना। उचिष्ट है। तो हम उचिष्ट सेवन कर रहे हैं। जगन्नाथ जी का यह सबसे बड़ा कृपा है। आप लोग आए हैं बहुत consciousness (चेतना) बहुत चेतनशील होकर प्रसाद लेना चाहिए। और नाम करना चाहिए। क्या प्रार्थना करना चाहिए? तीन दिन हम जो रहेंगे इधर, तीन चार दिन, क्या प्रार्थना करना चाहिए? क्या मांगना चाहिए? हाँ? भगवान के चरण कमल में धूल बनेंगे आप? तो इधर रह जाइए। ये सब बोल देते है हम। क्या मांगना चाहिए हमको पता नहीं। क्या मांगना चाहिए ठाकुर जी को? हाँ? कृष्ण प्रेम? नहीं। हम कहां में भी जाते हैं, परिक्रमा करते हैं, सेवा करते हैं, क्या मांगना चाहिए? भागवत में क्या मांगे हैं ध्रुव महाराज ने विष्णु को?
ललकुबेर मणिकुम्भ क्या मांगे हैं? प्रलाद महाराज ने क्या मांगे हैं? हाँ? भक्ति मांगे हैं? कभी नहीं। तुम पढ़े नहीं हो। हां, मुझे वैष्णव का शुद्ध भक्त का संग दीजिए। यह एक, यह देखिए, यह सबसे बड़ा सिद्धांत होता है। हम परिक्रमा कर रहे हैं, सेवा कर रहे हैं, सब कुछ कर रहे हैं, एक main point (मुख्य बिंदु) को भूल रहे हैं। चरण कमल का धूलि बनना है, मुझे प्रेम दीजिए, मुझे भक्ति दीजिए। नहीं। हम कुछ नहीं मांगेंगे। भागवत हमको सिखा रहे हैं क्या मांगना चाहिए। भगवान की यही कृपा होते हैं। भगवान को जहां भी हम जाते हैं, जो भी कुछ जो भी कुछ करते हैं ना, भगवान के यही मांगते हैं कि, प्रभु जी मुझे आपके शुद्ध भक्त का संग दे दीजिए। शुद्ध भक्त का संग रहे, उनके संग में रहेंगे, उनके सेवा करेंगे तो? क्या मिलेगा? प्रेम मिलेगा। तो प्रेम मिलेगा तो कृष्ण कहां जाएंगे? अभी कृष्ण का पीछे हम भाग रहे हैं। समझ रहे हैं ना। धूली बनने के लिए आपको भागना पड़ेगा। कई जन्म। भागने का बाद पकड़ नहीं सकते हो। कृष्ण तुम्हारा पीछे भागेंगे। कैसे? कौन सा formula (सूत्र) है? प्रेमी भक्त के पास रहते हैं ना। तो जाएंगे कहां कृष्ण? कृष्ण। कृष्ण से तोमार? पढ़ाई करना चाहिए न। वैष्णव भजन पता नहीं है तुमको इसे थोड़े का पता चलेगा।
कृष्ण से तोमार,
कृष्ण दिते पार,
तोमार सकती अचे।
अमी त कंगाल,
कृष्ण कृष्ण बोले,
धाईं तव पाछे पाछे
कृष्ण जिसका है, उनके पास चलिए। तो कृष्ण, कृष्ण क्या खुद उनका है क्या? कृष्ण का proprietorship (स्वामित्व) बोलते हैं ना? क्या बोले? मालिक। जगत का मालिक कौन है? कृष्ण का मालिक कौन है? देखो इतना हमको पता नहीं है। जगत का मालिक कौन है? जगन्नाथ। जगन्नाथ का मालिक कौन है? इसको बोलने के लिए हिचक हो रहा है सब का। ऐसा होगा। यही, यही, यही कमी है। जगत का मालिक जगन्नाथ है। जगन्नाथ का मालिक कौन है? सालबेग है। सुने हो ना सालबेग का story (कहानी)? सुने हो? हमारा उड़िया में "दसिया बावर" है। भगवान, कृष्ण, जैसे कृष्ण है। भगवान है। जगत का मालिक है। उनका मालिक कौन है? गोपिलोग है। सुदामा है। ध्रुवोदि है। पंडव है। नारद है। उनका बस में रह जाते हैं। यह भावुकता नहीं है। भावुकता नहीं है।
जो जितना बड़ा आदमी होता है ना, वो किसका control (नियंत्रण) में रहता है। नहीं रहता है? आप शादी किया है ना? किये हैं? लड़का कौन है? कृष्ण। कृष्ण बलराम? दोनों हैं? अच्छा। आप किसका control (नियंत्रण) में हैं? बोलो? नहीं, नहीं ऐसा बोलने होगा? पूरा झूठा मत बोलिए। उनके control (नियंत्रण) में हैं। मेरा लड़का है। आपका पास पैसा है, आप नौकरी किये हैं, कमाई कर रहे हैं। सब करने घर का मालिक गृह स्वामी है। प्रेम जिसको करते हैं ना उनका control (नियंत्रण) में आप रहते हैं। चाहे पत्नी हो, चाहे लड़का हो, चाहे कुत्ता हो। समझ रहे हो ना। जिन को आप प्रेम करेंगे उनका control (नियंत्रण) में आप रहेंगे। तो भगवान जगत का मालिक है, वो किसको प्रेम करते हैं? उनका धर्म क्या है? भक्त को प्रेम करना। क्यों? अगर प्रेम करना हमारा धर्म है, हम अगर भगवान को प्रेम कर रहे हैं, तो भगवान किसको प्रेम करेंगे? भक्तों को प्रेम करेंगे। और जिनको जो प्रेम कर रहे हैं उनका control (नियंत्रण) में वही है। तो जिनके control (नियंत्रण) में कृष्ण है, उनके पास जाने से कृष्ण मिलेगा। कृष्ण को आप बोलेंगे आप मुझे दे दीजिए, वह बोलेंगे मेरा control (नियंत्रण) में मैं नहीं हूं।
ये भागवत का सिद्धांत है कि नहीं?
अहं भक्तपराधीनो ह्यस्वतन्त्र इव द्विज ।
साधुभिर्ग्रस्तहृदयो भक्तैर्भक्तजनप्रिय: ॥ (--श्रीमद भागवतम 9.4.६३)
शास्त्र सुन लीजिए। "साधुभिर्ग्रस्तहृदयो" इसका मतलब क्या होता है? गृहस्थ मतलब क्या है? हिंदी में? ग्रस्त? निगल लिया है। साधु ने बिल्कुल मुझे समा लिया हैं। निगल लिया। र्ग्रस्तहृदयो। बिल्कुल मुझे वो पूरा समा लिए हैं, हृदय में। मतलब, क्यों ऐसा आप कर रहे हो? आपका कोई independent (स्वतंत्रता) नहीं है? गीता में आप बोल रहे थे कि आपको independent (स्वतंत्रता) है। अभी क्या बोल रहे हैं - साधु ने मुझे निगल लिया है, पूरा ग्रस्त कर लिया है। आपका कोई independent (स्वतंत्रता) नहीं है। और बैकुंठ का यह प्रवचन है। तो दुर्वासा को दे रहे हैं। बैकुंठ का यह प्रवचन है। दुर्वासा जब गए थे ना, ठाकुर जी बोले - साधुभिर्ग्रस्तहृदयो। साधु तुमको संभाल लिए? निगल लिए? क्या है? तुम्हारा कोई power (शक्ति) नहीं है? मैं क्या करूं, जैसे तुम्हारा धर्म है मेरा भी ऐसा धर्म है। क्या तुम्हारा धर्म है? भक्त, भक्त जनोंप्रिय। भक्त जन मेरा बहुत प्रिय होते है। मैं क्या करूँ। सबका कोई धर्म होता है ना। धर्म नहीं होता है? अपना अपना स्वभाव होता है। स्वभाव से जगत जी रहा हैं। हमारा स्वभाव से हम है। हमारा स्वभाव ऐसा होता है। हम किसको प्रेम करते हैं। भगवान का स्वभाव क्या होता है? भगवान का स्वभाव यही होता है कि भक्त को प्रेम करना। उनका अधीन में रहना। इसलिए हम जहां भी परिक्रमा जाए। कभी कभी हमको भावुकता आ जाता है ना। तो मैं तो भाई थोड़ा बोल देता हूं, ऐसा बुरा मत मानिए। इसका मतलब नहीं कि मैं धाम को पसंद नहीं करता हूं। राधारानी ये सिद्धांत है। और इसमें जीवन आता है। नहीं तो भावुकता हो जाएगा। भगवान भक्ति का अधीन में रहते हैं। हम भगवान के पास जाए, भगवान का सेवा करे, नाम करे, कुछ भी भक्ति का अनुष्ठान करे, हर समय ये प्रार्थना करना चाहिए - आप जिनका अधीन में हो, मैं उनका दास बनना चाहता हूं। उनका चरण कमल में मुझे रज बना लीजिए। कितना बड़ा philosophy (सिद्धांत) अंतर हो गया। आप direct (सीधे) बनना चाहते थे। कि मुझे चरण का धुली बना लीजिए। कितना बड़ा गलती काम देख लीजिए। कैसे हम ऐसे। नहीं। मैं भक्त का चरण धुली बनना चाहता हूं। आप जिन जिन भक्त का चरण कमल में, आप जिस भक्त का अधीन में हो ना उस भक्त का चरण कमल में मैं रज बनना चाहता हूं।
ये भाव कहां है? वो पद में है ना, षड गोस्वामी प्रार्थना में।
ताण्डेर चरण सेवी, श्री रूप सनातन में इसमें है। चरण धुली। इसमें है। तादेर। नहीं, नहीं। पंचाग्रास, तादेर। तार सवार पदरेणों, कैसे हो गया? ता सवार पदरेणों मोर पंचाग्रास। हम चाहे परिक्रमा में आए, मंदिर में सेवा किए, कुछ भी किए कभी गोस्वामी आचार्य लोक गुरु वर्गों के अनुगत्य छोड़ना नहीं चाहिए। हर समय भगवान को, राधा रानी को, जगन्नाथ जी को प्रार्थना करना चाहिए। जो आपके प्रेमी भक्त हैं, चरण कमल में जैसा मति रहे। यह साधन का बल, साधन का सार है। साधन का तात्पर्य। इससे प्रेम प्राप्त होता है। तादेर, क्या? कौन सा बोल रहे थे पद?
"तासबार पदरेणू, मोर पंचाग्रास। उसका ऊपर पद क्या है?
एइ छय् गोसाइ जबॆ ब्रजॆ कॊइला बास्
राधा-कृष्ण-नित्य-लीला कॊरिला प्रकाश्
एइ छय् गोसाइ जार् मुइ तार् दास्। दासानुदास भाव आ गया कि नहीं? एइ छय् गोसाइ जार् मुइ तार् दास्। ये छह गोस्वामी को जो प्रेम धन बनाये हैं। ये छह गोस्वामी को जो प्राण धन बनाये हैं उनका में दास बनना चाहता हूँ। एइ छय् गोसाइ जार् मुइ तार् दास्। इसके बाद? एइ छय् गोसाइ जार। कार? किसका है? किसका है? पता नहीं होता है apko? एइ छय् गोसाइ जार् मुइ तार् दास्। एइ छय् गोसाइ किसका है? प्रभुपाद, भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर। गुरु। उन लोग का है। तार दास। मैं उनका दास बनना चाहता हूं। ता सबार पद-रेणु मोर पंच-ग्रास्। परंपरा के जितना आचार्य लोग हैं, उनका पदरेणू क्या है? पंच-ग्रास्। पंच-ग्रास्। पंच-ग्रास् क्या होता है? यज्ञ वगैरह करते हैं, तप वगैरह करते हैं ना, इसमें उसको क्या बोलते हैं? वो बहुत austier life maintain (तप्त जीवन निर्वहन) करते हैं। यज्ञ करते हैं, सब कुछ कर थोड़ा थोड़ा चीज़ लेते हैं। समझ रहे हैं ना। यज्ञ करने का बाद उसको बहुत पवित्र मान कर थोड़ा लेते हैं। फल, फूल, क्या बोले उसको? नहीं। पंच ग्रास जो होता है ना। जैसे हम fasting (उपवास) करते हैं एकादशी में fasting (उपवास) करते हैं, क्या लेते हैं? अनुकूल प्रसाद लेते हैं। इसमें जिस पंचग्राश जैसा होता है कि, इसमें description (व्याख्यान) मैंने पढ़ा था, अभी तो भूल गया हूं। और याद नहीं आ रहा। अभी better (उत्तम) मैं बोल दिया हूं। बहुत मानन कर, हम इसको लेते हैं। पंचग्राश। इसलिए हम परिक्रमा कर रहे हैं।
महाराज श्री आ गए। तो मैं कथा को इधर विश्राम देता हूं। आप लोग थोड़ा side (जगह) दे दीजिए। चाहे हम परिक्रमा करें, चाहे भगवान की सेवा करें, जहां भी जाएं, हम भगवान को यही प्रार्थना करना चाहिए। जैसे साधु, गुरु, जो प्रेमी भक्त है, उनका चरण कमल में जैसा मति रहे।
तो इधर मैं कथा को विश्राम देता हूं।
हरे कृष्णा। श्रील प्रभुपाद की जय। जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा महारानी की जय। संबित भक्त बृंदा की जय।
श्रीखेत्र परिक्रमा की जय। नीति गौर प्रेमानन्दे हरि बोल।
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